Lesön 70
Ahanga inlahen ngam finötyö Yēsū tö më ma-ahānga
रोमी साम्राज्य के सम्राट औगुस्तुस ने हुक्म दिया कि सभी यहूदी नाम लिखवाने अपने-अपने शहर जाएँ। इसलिए यूसुफ और मरियम बेतलेहेम गए। यूसुफ का परिवार उसी शहर से था। तब तक मरियम का बच्चे को जन्म देने का समय आ गया था।
जब वे बेतलेहेम पहुँचे तो उन्हें रहने के लिए सिर्फ एक पशुशाला मिली। वहीं पर मरियम ने अपने बेटे यीशु को जन्म दिया। फिर मरियम ने उसे मुलायम कपड़ों में लपेटा और धीरे से एक चरनी में रखा।
बेतलेहेम के पास कुछ चरवाहे मैदानों में रहकर रात को अपने झुंडों की रखवाली कर रहे थे। अचानक उनके सामने एक स्वर्गदूत आकर खड़ा हो गया और यहोवा की महिमा की रौशनी उनके चारों तरफ चमक उठी। चरवाहे बहुत डर गए, मगर स्वर्गदूत ने उनसे कहा, ‘डरो मत। मैं तुम्हें एक खुशखबरी देने आया हूँ। आज बेतलेहेम में मसीहा पैदा हुआ है।’ तभी बहुत-से स्वर्गदूत आसमान में दिखायी दिए। उन्होंने कहा, ‘स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो और धरती पर शांति हो।’ फिर वे स्वर्गदूत गायब हो गए। तब चरवाहों ने क्या किया?
वे एक-दूसरे से कहने लगे, ‘चलो, हम अभी बेतलेहेम चलते हैं।’ वे जल्दी-जल्दी गए और उन्होंने पशुशाला में यूसुफ और मरियम को अपने बच्चे के साथ देखा।
स्वर्गदूत ने चरवाहों को जो बताया था वह जिस-जिसने सुना वह ताज्जुब करने लगा। मरियम ने स्वर्गदूत की बातों पर गहराई से सोचा और वे बातें कभी नहीं भूली। फिर चरवाहे अपने झुंडों के पास लौट गए और उन्होंने जो देखा और सुना था उसके लिए यहोवा का धन्यवाद किया।
“मैं परमेश्वर की तरफ से आया हूँ और यहाँ हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया, बल्कि उसी ने मुझे भेजा है।”—यूहन्ना 8:42