Lesön 72
Ngam Ṙānalö Yēsū
यूसुफ और मरियम, यीशु और अपने दूसरे बेटे-बेटियों के साथ नासरत में रहते थे। यूसुफ अपने परिवार की रोज़ी-रोटी के लिए बढ़ई का काम करता था। वह उन्हें यहोवा और उसके कानून के बारे में सिखाता भी था। पूरा परिवार उपासना करने के लिए नियमित तौर पर सभा-घर जाता था और हर साल फसह मनाने यरूशलेम जाता था।
जब यीशु 12 साल का था तब उसका परिवार हर साल की तरह एक लंबा सफर तय करके यरूशलेम गया। शहर में बहुत भीड़ थी क्योंकि लोग फसह मनाने वहाँ आए थे। त्योहार के बाद यूसुफ और मरियम वापस घर जाने के लिए निकल पड़े। उन्हें लगा कि यीशु बाकी लोगों के साथ होगा। लेकिन बाद में जब उन्होंने उसे अपने रिश्तेदारों में ढूँढ़ा तो वह नहीं मिला।
वे वापस यरूशलेम गए और तीन दिन अपने बेटे को ढूँढ़ते रहे। आखिर में वे मंदिर गए। वहाँ उन्होंने देखा कि यीशु शिक्षकों के बीच बैठा उनकी बात ध्यान से सुन रहा है और अच्छे-अच्छे सवाल पूछ रहा है। शिक्षकों को यीशु इतना अच्छा लगा कि वे उससे सवाल पूछने लगे। और जब यीशु ने उनके सवालों के जवाब दिए तो वे सुनकर हैरान रह गए। वे देख सकते थे कि उसे यहोवा के कानून की अच्छी समझ है।
यूसुफ और मरियम, यीशु को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते बहुत परेशान हो गए थे। इसलिए मरियम ने कहा, ‘बेटे, तू कहाँ रह गया था? हम तुझे सब जगह ढूँढ़ रहे थे!’ यीशु ने कहा, ‘क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं यहाँ अपने पिता के घर में होऊँगा?’
यीशु अपने माता-पिता के साथ अपने घर नासरत लौट गया। यूसुफ ने उसे बढ़ई का काम सिखाया। आपको क्या लगता है, जब यीशु जवान हुआ तो वह कैसा इंसान बना? जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, वह और भी बुद्धिमान होता गया और परमेश्वर और इंसान उसे बहुत पसंद करते थे।
“हे मेरे परमेश्वर, तेरी मरज़ी पूरी करने में ही मेरी खुशी है, तेरा कानून मेरे दिल की गहराई में बसा है।”—भजन 40:8