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प्रकाशितवाक्य 4:3

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    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2005, पेज 31

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    प्रहरीदुर्ग,

    7/1/1995, पेज 13

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2009, पेज 30

प्रकाशितवाक्य 4:6

फुटनोट

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    प्रका 4:6 या, “स्फटिक।”

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 4

    प्रहरीदुर्ग,

    4/1/1987, पेज 10

प्रकाशितवाक्य 4:11

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 4

    प्रहरीदुर्ग,

    1/1/2009, पेज 30

    12/1/1999, पेज 10-11

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रकाशितवाक्य 4:1-11

प्रकाशितवाक्य

4 इन बातों के बाद देखो मैंने देखा कि स्वर्ग में एक खुला दरवाज़ा है और जो आवाज़ मैंने पहले सुनी थी वह एक तुरही जैसी आवाज़ थी और उस आवाज़ ने मुझसे कहा: “यहाँ ऊपर आ जा, मैं तुझे वे बातें दिखाऊँगा जिनका होना तय है।” 2 इसके बाद, मैं फौरन पवित्र शक्‍ति के असर में आ गया: और मैंने स्वर्ग में एक राजगद्दी देखी और उस पर कोई बैठा हुआ था। 3 और जो बैठा था उसका रूप सूर्यकांत मणि और लाल रंग के कीमती रत्न जैसा था और उसकी राजगद्दी के चारों तरफ एक मेघ-धनुष था जो देखने में पन्‍ना जैसा था।

4 उस राजगद्दी के चारों तरफ चौबीस राजगद्दियाँ थीं और इन राजगद्दियों पर मैंने चौबीस प्राचीन बैठे देखे, जो सफेद पोशाक पहने हुए थे और उनके सिरों पर सोने के ताज थे। 5 उस राजगद्दी से बिजलियाँ कौंध रही थीं और गड़गड़ाहट और गर्जन की आवाज़ निकल रही थी। और राजगद्दी के सामने आग के सात बड़े दीए थे जिनसे लपटें उठ रही थीं। इनका मतलब परमेश्‍वर की सात पवित्र शक्‍तियाँ हैं। 6 और राजगद्दी के सामने काँच जैसा समुद्र था जो बिल्लौर* जैसा पारदर्शी था।

राजगद्दी के बीच और उसके चारों तरफ चार जीवित प्राणी थे जिनके आगे-पीछे आँखें ही आँखें थीं। 7 पहला जीवित प्राणी शेर जैसा था, दूसरा जीवित प्राणी जवान बैल जैसा था, तीसरे जीवित प्राणी का चेहरा इंसान के चेहरे जैसा था और चौथा जीवित प्राणी एक उड़ते उकाब जैसा था। 8 इन चार जीवित प्राणियों में से हरेक के छः-छः पंख थे। इनके चारों तरफ और अंदर की तरफ आँखें ही आँखें थीं। और वे बिना रुके रात-दिन यह कहते रहते हैं: “यहोवा परमेश्‍वर पवित्र, पवित्र, पवित्र है। सर्वशक्‍तिमान, जो था, जो है और जो आ रहा है।”

9 और जब-जब ये जीवित प्राणी राजगद्दी पर बैठनेवाले की, जो हमेशा-हमेशा के लिए जीवित है, महिमा करते और उसे आदर और धन्यवाद देते हैं, 10 तब-तब ये चौबीस प्राचीन राजगद्दी पर बैठनेवाले के सामने गिरकर उसकी उपासना करते हैं जो हमेशा-हमेशा तक जीवित है और वे अपने ताज निकालकर उसकी राजगद्दी के सामने रखते हैं और कहते हैं: 11 “हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू अपनी महिमा, अपने आदर और शक्‍ति के लिए तारीफ पाने के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं और तेरी ही मरज़ी से ये वजूद में आयीं और रची गयीं।”

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