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    पारिवारिक सुख, पेज 157-158

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 42

    सजग होइए!, 11/8/1998, पेज 26-27

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 42

    सजग होइए!, 11/8/1998, पेज 26-27

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    सजग होइए!, 11/8/1998, पेज 26-27

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1 कुरिंथियों 7:36

फुटनोट

  • *

    1कुरिं 7:36 शाब्दिक, “अपने कुँवारेपन के साथ बुरा सलूक कर रहा है।”

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 42

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    पारिवारिक सुख, पेज 15-16

    युवाओं के प्रश्‍न, पेज 226-228

1 कुरिंथियों 7:37

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1 कुरिंथियों 7:38

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 42

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    8/1/1992, पेज 30

    5/1/1988, पेज 10-15

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    मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका,

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 42

    प्यार के लायक, पेज 134-135

    प्रहरीदुर्ग,

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    1/15/2015, पेज 31-32

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    3/1/1991, पेज 24

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    सजग होइए!,

    11/8/1999, पेज 19

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    5/1/1988, पेज 15-20

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
1 कुरिंथियों 7:1-40

1 कुरिंथियों

7 अब मैं उन सवालों का जवाब दे रहा हूँ जिनके बारे में तुमने लिखकर मुझसे पूछा था: एक आदमी के लिए अच्छा तो यह है कि वह स्त्री को न छूए। 2 फिर भी, व्यभिचार के प्रचलन की वजह से, हर आदमी की अपनी पत्नी हो और हर स्त्री का अपना पति हो। 3 पति अपनी पत्नी का हक अदा करे और उसी तरह पत्नी भी अपने पति का हक अदा करे। 4 पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार नहीं, मगर उसके पति को है। उसी तरह, पति को अपने शरीर पर अधिकार नहीं बल्कि उसकी पत्नी को है। 5 तुम एक-दूसरे को इस हक से वंचित न रखो, लेकिन अगर प्रार्थना के लिए वक्‍त निकालने के लिए ऐसा करो भी, तो आपसी रज़ामंदी से सिर्फ कुछ वक्‍त तक के लिए करो। इसके बाद फिर से एक संग हो जाओ, ताकि शैतान तुम्हारे संयम की कमी की वजह से तुम्हें फुसलाता न रहे। 6 मगर, मैं यह बात एक रिआयत के तौर पर कह रहा हूँ, न कि आज्ञा दे रहा हूँ। 7 मैं चाहता हूँ कि काश सब आदमी ऐसे होते जैसा मैं हूँ। मगर, हर किसी को परमेश्‍वर से अपना तोहफा मिला है, किसी को इस तरह का, तो किसी को दूसरी तरह का।

8 अब मैं अविवाहितों और विधवाओं से कहता हूँ कि उनके लिए अच्छा है कि वे ऐसे ही रहें जैसा मैं हूँ। 9 लेकिन अगर उनमें संयम नहीं तो वे शादी करें, क्योंकि काम-इच्छा की आग में जलने से तो बेहतर यह है कि वे शादी कर लें।

10 शादी-शुदा लोगों को मैं ये हिदायतें देता हूँ, दरअसल मैं नहीं बल्कि प्रभु देता है कि एक पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए। 11 लेकिन अगर वह अलग हो भी जाए, तो वह फिर शादी न करे या दोबारा अपने पति के साथ मेल कर ले। और एक पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को न छोड़े।

12 मगर दूसरों से प्रभु नहीं, बल्कि मैं, हाँ मैं कहता हूँ: अगर एक भाई की पत्नी अविश्‍वासी हो फिर भी वह अपने पति के साथ रहने के लिए राज़ी हो, तो वह भाई अपनी पत्नी को न छोड़े। 13 अगर एक स्त्री का पति अविश्‍वासी हो फिर भी वह अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए राज़ी हो, तो वह स्त्री अपने पति को न छोड़े। 14 इसलिए कि अविश्‍वासी पति अपनी पत्नी के साथ इस रिश्‍ते की वजह से पवित्र माना जाता है और अविश्‍वासी पत्नी अपने पति, यानी उस भाई के साथ इस रिश्‍ते की वजह से पवित्र मानी जाती है। अगर ऐसा न होता, तो तुम्हारे बच्चे असल में अशुद्ध होते, मगर अब वे पवित्र हैं। 15 लेकिन अगर अविश्‍वासी साथी अलग होना चाहता है, तो उसे अलग होने दो। ऐसे हालात में एक भाई या बहन बंदिश में नहीं, मगर परमेश्‍वर ने तुम्हें शांति के लिए बुलाया है। 16 इसलिए कि पत्नी, अगर तू अपने पति के साथ रहे तो क्या जाने तू अपने पति को बचा ले? या पति, अगर तू अपनी पत्नी के साथ रहे तो क्या जाने तू अपनी पत्नी को बचा ले?

17 ठीक जैसा यहोवा ने हरेक को हिस्सा दिया है और परमेश्‍वर ने जिस दशा में हरेक को बुलाया है, वह वैसा ही चलता रहे। मैं सब मंडलियों के लिए यही आदेश ठहराता हूँ। 18 क्या किसी आदमी को खतने की हालत में बुलाया गया था? फिर वह बिन खतने जैसा न बने। क्या किसी आदमी को बिना खतने की हालत में बुलाया गया था? तो वह खतना न कराए। 19 खतना होना कुछ मायने नहीं रखता है, न ही खतना न होना। मगर परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करना मायने रखता है। 20 हरेक को जिस किसी हालत में बुलाया गया है, वह वैसा ही रहे। 21 क्या तुझे तब बुलाया गया जब तू एक दास था? तो यह बात तुझे परेशान न करे। लेकिन अगर तू आज़ाद हो सकता है, तो ऐसे मौके को न छोड़। 22 इसलिए कि जो दास की हालत में रहते हुए प्रभु में बुलाया गया था वह प्रभु में आज़ाद है और उसी का है। वैसे ही जो आज़ाद हालत में बुलाया गया था वह मसीह का दास है। 23 तुम्हें बहुत बड़ी कीमत देकर खरीद लिया गया है, इंसानों के गुलाम बनना छोड़ दो। 24 भाइयो, हरेक को जिस किसी हालत में बुलाया गया है, वह उसी हालत में परमेश्‍वर के साथ बना रहे।

25 अब कुँवारों के बारे में प्रभु से मुझे कोई आज्ञा नहीं मिली है। मगर मैं जिसे प्रभु ने दया दिखायी थी कि मैं विश्‍वासयोग्य पाया जाऊँ, मैं अपनी राय बताता हूँ। 26 इसलिए मुझे यह सही लगता है कि आजकल के मुश्‍किल हालात को देखते हुए, यह अच्छा है कि एक आदमी जैसा है वैसा ही रहे। 27 क्या तू पत्नी से बंधा हुआ है? तो उससे आज़ाद होने की कोशिश करना बंद कर। क्या तू एक पत्नी से आज़ाद है? तो एक पत्नी की खोज करना बंद कर। 28 लेकिन अगर तू शादी कर भी ले, तो कोई पाप नहीं करेगा। और अगर एक कुँवारा शादी करता है, तो यह कोई पाप नहीं है। फिर भी, जो शादी करते हैं उन्हें शारीरिक दुःख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी। मगर मैं तुम्हें इनसे बचाना चाहता हूँ।

29 इसके अलावा, भाइयो मैं यह कहता हूँ, जो वक्‍त रह गया है उसे घटाया गया है। इसलिए जिनकी पत्नियाँ हैं, वे अब से ऐसे हों जैसे उनकी पत्नियाँ हैं ही नहीं, 30 वे भी जो रोते हैं वे ऐसे हों जो रोते नहीं, जो खुशियाँ मनाते हैं वे ऐसे हों जो खुशियाँ नहीं मनाते और जो खरीदते हैं वे ऐसे हों कि उनके पास है ही नहीं। 31 इस दुनिया का इस्तेमाल करनेवाले ऐसे हों जो इसका पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए कि इस दुनिया का दृश्‍य बदल रहा है। 32 वाकई, मैं चाहता हूँ कि तुम चिंताओं से आज़ाद रहो। अविवाहित आदमी प्रभु की सेवा से जुड़ी बातों की चिंता में रहता है कि वह कैसे प्रभु को खुश करे। 33 मगर शादी-शुदा आदमी दुनियादारी की बातों की चिंता में रहता है कि कैसे वह अपनी पत्नी को खुश करे, 34 और वह बँटा हुआ है। इसके अलावा, अविवाहित और कुँवारी स्त्री प्रभु की सेवा से जुड़ी बातों की चिंता में रहती है ताकि वह अपने शरीर और मन दोनों से पवित्र रहे। लेकिन, शादी-शुदा स्त्री दुनियादारी की बातों की चिंता में रहती है कि कैसे वह अपने पति को खुश करे। 35 मगर मैं यह बात खुद तुम्हारे फायदे के लिए कह रहा हूँ, न कि तुम पर कोई बंदिश लगाने के लिए। इसके बजाय, मैं तुम्हें वह करने के लिए उकसा रहा हूँ जो तुम्हारे लिए सही है, जिससे तुम बिना ध्यान भटकाए लगातार प्रभु की सेवा करते रहो।

36 लेकिन अगर किसी कुँवारे को लगता है कि वह अपने शरीर की इच्छाओं पर काबू नहीं कर पा रहा* और अगर वह जवानी की कच्ची उम्र पार कर चुका है और उसे लगता है कि उसे शादी करनी चाहिए, तो इन हालात में वह ऐसा ही करे। ऐसे में वह पाप नहीं करता। ऐसे लोग शादी कर लें। 37 लेकिन अगर कोई अपने दिल में इरादा कर चुका है कि वह कुँवारा ही रहेगा और वह अपने इस फैसले पर अटल रहता है क्योंकि उसे शादी करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती, बल्कि वह अपनी इच्छा पर पूरा अधिकार रखता है तो वह अच्छा करता है। 38 इसलिए वह कुँवारा भी जो शादी करता है वह अच्छा करता है। मगर वह जो शादी नहीं करता वह ज़्यादा अच्छा करता है।

39 एक पत्नी अपने पति के जीते-जी उससे बँधी होती है। लेकिन अगर उसका पति मौत की नींद सो जाता है, तो वह जिससे चाहे उससे शादी करने के लिए आज़ाद है, मगर सिर्फ प्रभु में। 40 लेकिन अगर वह जैसी है वैसी ही रहे, तो मेरी राय में ज़्यादा खुश रहेगी। बेशक मेरा मानना है कि मुझमें भी परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति काम करती है।

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