17 पिता इसीलिए मुझसे प्यार करता है+ क्योंकि मैं अपनी जान देता हूँ+ ताकि उसे फिर से पाऊँ। 18 कोई भी इंसान मुझसे मेरी जान नहीं छीनता, मगर मैं खुद अपनी मरज़ी से इसे देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है और इसे दोबारा पाने का भी अधिकार है।+ इसकी आज्ञा मुझे अपने पिता से मिली है।”