3 मगर मुझे डर है कि जैसे साँप ने चालाकी से हव्वा को बहका लिया था,+ वैसे ही तुम्हारी सोच न बिगड़ जाए और तुम्हारी सीधाई और पवित्रता भ्रष्ट न हो जाए जिसे पाने का हकदार मसीह है।+
14 लेकिन हर किसी की इच्छा उसे खींचती और लुभाती है,* जिससे वह परीक्षा में पड़ता है।+15 फिर इच्छा गर्भवती होती है और पाप को जन्म देती है और जब पाप कर लिया जाता है तो यह मौत लाता है।+