35 उसके सामने धरती के निवासी कुछ भी नहीं हैं। वह आकाश की सेना और धरती के निवासियों के साथ वही करता है जो उसकी मरज़ी के मुताबिक है। उसे कोई रोक नहीं सकता,*+ न ही उससे कह सकता है, ‘यह तूने क्या किया?’+
20 मगर हे इंसान, तू कौन है जो परमेश्वर को पलटकर जवाब देने की जुर्रत कर रहा है?+ क्या ढली हुई चीज़ अपने ढालनेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया?”+