30 मैं आलसी+ के खेत के पास से जा रहा था,
उस इंसान के अंगूरों के बाग से, जिसमें समझ ही नहीं।
31 तब मैंने देखा वहाँ जंगली पौधे उग आए हैं,
ज़मीन बिच्छू-बूटी के पौधों से भर चुकी है
और पत्थर की दीवार टूटी पड़ी है।+
32 यह देखकर मैंने मन में गाँठ बाँध ली,
हाँ, मैंने देखकर यह सबक सीखा:
33 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,
हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,
34 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,
तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+