16 इसलिए तुम एक-दूसरे के सामने खुलकर अपने पाप मान लो+ और एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करो ताकि तुम अच्छे हो जाओ। एक नेक इंसान की मिन्नतों का ज़बरदस्त असर होता है।+
21 प्यारे भाइयो, अगर हमारा दिल हमें दोषी न ठहराए, तो हम परमेश्वर से बेझिझक बात कर सकते हैं।+22 और हम उससे चाहे जो भी माँगें वह हमें देता है+ क्योंकि हम उसकी आज्ञाएँ मानते हैं और वही करते हैं जो उसकी नज़र में अच्छा है।