18 मूरत बनानेवाले को उस मूरत से क्या फायदा, जिसे उसने खुद बनाया है?
वह बस एक ढली हुई मूरत है और झूठ सिखाती है,
फिर भी उसका बनानेवाला उस पर भरोसा करता है,
बेज़ुबान और निकम्मी मूरतें बनाता जाता है।+
19 धिक्कार है उस पर जो लकड़ी के टुकड़े से कहता है, “जाग!”
गूँगे पत्थरों से कहता है, “उठ और हमें सिखा!”
देखो, वे सोने-चाँदी से मढ़ी तो हैं,+ पर उनमें साँस नहीं!+