9 इसीलिए इंसाफ हमसे कोसों दूर है
और नेकी हम तक पहुँच नहीं पाती।
हम रौशनी की उम्मीद करते रहते हैं, पर अँधेरा ही मिलता है,
हम उजाले की आस देखते रहते हैं, मगर घुप अँधेरे में चलते हैं।+
10 हम अंधों की तरह दीवार टटोलते हैं,
ऐसे टटोलते हुए चलते हैं मानो हमारी आँखें ही न हों।+
भरी दोपहरी में ऐसे ठोकर खाते हैं मानो शाम का अँधेरा छा गया हो।
ताकतवरों के बीच हम ज़िंदा लाश बनकर रह गए हैं।