6 तुम बोते तो बहुत हो मगर तुम्हें फसल कम मिलती है।+ तुम खाते हो मगर पेट नहीं भरता। पीते हो मगर संतुष्ट नहीं होते। तुम कपड़े पहनते हो मगर तुम्हें गरमी नहीं मिलती। मज़दूरी करनेवाला अपनी मज़दूरी ऐसी थैली में डालता है जिसमें छेद-ही-छेद हैं।’”
10 उससे पहले न तो लोगों को उनकी मज़दूरी मिलती थी, न जानवरों का किराया।+ और दुश्मन के डर से कहीं आना-जाना खतरे से खाली नहीं था क्योंकि मैंने सब लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ कर दिया था।’