29 फिर भी हर राष्ट्र के लोगों ने अपने-अपने देवता की मूरत बनायी* और उन मूरतों को ऊँची जगहों पर बने पूजा-घरों में रखा। ये सभी ऊँची जगह सामरी लोगों ने बनायी थीं। हर राष्ट्र से आए लोगों ने उन शहरों में ऐसा किया था जहाँ वे बस गए थे।
33 इस तरह लोग यहोवा का डर तो मानते थे लेकिन पूजा अपने देवताओं की ही करते थे और उन राष्ट्रों के धर्मों* को मानते थे जहाँ से उन्हें बंदी बनाकर यहाँ लाया गया था।+