34 सच तो यह है कि उनमें कोई भी तंगी में नहीं था+ क्योंकि जितनों के पास खेत या घर थे, वे उन्हें बेच देते और मिलनेवाली रकम लाकर 35 प्रेषितों के पैरों पर रख देते थे।+ और फिर हरेक को उसकी ज़रूरत के मुताबिक बाँट दिया जाता था।+
27 हमारे परमेश्वर और पिता की नज़र में शुद्ध और निष्कलंक उपासना* यह है: अनाथों और विधवाओं की मुसीबतों में देखभाल की जाए+ और खुद को दुनिया से बेदाग रखा जाए।+