11 आज के दिन तक हम भूखे-प्यासे+ और फटेहाल* हैं, हमें मारा-पीटा जाता है,*+ हम बेघर हैं 12 और अपने हाथों से कड़ी मेहनत करते हैं।+ जब हमारा अपमान किया जाता है तो हम आशीष देते हैं।+ जब हमें सताया जाता है तो हम धीरज धरते हुए सह लेते हैं।+
15 मगर मैंने इनमें से एक भी इंतज़ाम का फायदा नहीं उठाया।+ दरअसल, मैंने ये बातें इसलिए नहीं लिखीं कि मेरे लिए यह सब किया जाए, क्योंकि इससे तो अच्छा होगा कि मैं मर जाऊँ। मेरे पास शेखी मारने की यह जो वजह है, इसे मैं किसी भी इंसान को छीनने नहीं दूँगा।+
9 भाइयो, हमने जो कड़ी मेहनत की थी और जो संघर्ष किया था, वह सब तुम्हें ज़रूर याद होगा। जब हमने तुम्हें परमेश्वर की खुशखबरी सुनायी तो रात-दिन काम किया ताकि तुममें से किसी पर भी खर्चीला बोझ न बनें।+