10 मेरा लक्ष्य यही है कि मैं मसीह को और उसके दोबारा ज़िंदा होने की ताकत को जानूँ+ और उसके जैसी दुख-तकलीफें सहूँ+ और उसके जैसी मौत मरने के लिए खुद को दे दूँ+
13 इसके बजाय, तुम इस बात पर खुशी मनाओ+ कि तुम इस हद तक मसीह की दुख-तकलीफों में साझेदार बन रहे हो+ ताकि जब उसकी महिमा प्रकट होगी तब तुम्हें और ज़्यादा खुशियाँ मिलें और तुम आनंद से भर जाओ।+