7 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें जो देश देगा, वहाँ अगर तुम्हारे शहर में कोई इसराएली भाई कंगाल हो जाता है तो तुम उसकी मदद करने से अपना हाथ मत खींच लेना और दिल कठोर न कर लेना।+8 इसके बजाय तू खुले हाथ उसे उधार* देना।+ वह अपनी ज़रूरत के हिसाब से तुझसे जितना भी उधार माँगे उसे ज़रूर देना।
35 इसलिए कि मैं भूखा था और तुमने मुझे खाना दिया। मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया। मैं अजनबी था और तुमने मुझे अपने घर ठहराया।+36 मैं नंगा था* और तुमने मुझे कपड़े दिए।+ मैं बीमार पड़ा और तुमने मेरी देखभाल की। मैं जेल में था और तुम मुझसे मिलने आए।’+
4 लेकिन अगर किसी विधवा के बच्चे या नाती-पोते हैं, तो वे पहले अपने घर के लोगों की देखभाल करके परमेश्वर के लिए अपनी भक्ति दिखाएँ।+ वे अपने माता-पिता और उनके माता-पिता को उनका हक चुकाएँ+ क्योंकि ऐसा करना परमेश्वर को भाता है।+
27 हमारे परमेश्वर और पिता की नज़र में शुद्ध और निष्कलंक उपासना* यह है: अनाथों और विधवाओं की मुसीबतों में देखभाल की जाए+ और खुद को दुनिया से बेदाग रखा जाए।+
17 लेकिन अगर किसी के पास गुज़र-बसर के लिए सबकुछ है और वह देखे कि उसका भाई तंगी में है, फिर भी उस पर दया करने से इनकार कर देता है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि वह परमेश्वर से प्यार करता है?+