2 मैं कहता हूँ, “राजा का हुक्म मान+ क्योंकि तूने परमेश्वर के सामने शपथ खायी थी।+ 3 उतावली में आकर तू राजा के सामने से चले न जाना,+ न किसी बुरे काम में उलझना।+ राजा जो चाहता है वह करता है। 4 उसकी बात पत्थर की लकीर है।+ कौन उससे कह सकता है, ‘यह तू क्या कर रहा है?’”