34 मगर यीशु कह रहा था, “पिता, इन्हें माफ कर दे क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।”+ उन्होंने उसके कपड़े आपस में बाँटने के लिए चिट्ठियाँ डालीं।+
59 जब वे स्तिफनुस को पत्थर मार रहे थे, तो उसने यह प्रार्थना की, “हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान* तेरे हवाले करता हूँ।” 60 फिर उसने घुटने टेककर बड़ी ज़ोर से पुकारा, “यहोवा,* यह पाप इनके सिर मत लगाना।”+ यह कहने के बाद वह मौत की नींद सो गया।
21 दरअसल, तुम्हें इसी राह पर चलने के लिए बुलाया गया है, क्योंकि मसीह ने भी तुम्हारी खातिर दुख उठाया+ और वह तुम्हारे लिए एक आदर्श छोड़ गया ताकि तुम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो।+
23 जब उसकी बेइज़्ज़ती की गयी,*+ तो बदले में उसने बेइज़्ज़ती नहीं की।*+ जब वह दुख झेल रहा था,+ तो उसने धमकियाँ नहीं दीं, बल्कि खुद को उस परमेश्वर के हाथ में सौंप दिया जो सच्चा न्याय करता है।+