मत्ती
सारांश
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यीशु “सब्त के दिन का प्रभु” (1-8)
सूखे हाथवाले आदमी को ठीक किया (9-14)
परमेश्वर का प्यारा सेवक (15-21)
दुष्ट स्वर्गदूत, पवित्र शक्ति की मदद से निकाले गए (22-30)
ऐसा पाप जिसकी कोई माफी नहीं (31, 32)
पेड़ अपने फलों से पहचाना जाता है (33-37)
योना का चिन्ह (38-42)
जब दुष्ट स्वर्गदूत लौटता है (43-45)
यीशु की माँ और उसके भाई (46-50)
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राज के बारे में मिसालें (1-52)
बीज बोनेवाला (1-9)
यीशु मिसालें क्यों देता था (10-17)
बोनेवाले की मिसाल का मतलब समझाया (18-23)
गेहूँ और जंगली पौधे (24-30)
राई का दाना और खमीर (31-33)
यीशु ने मिसालें बताकर भविष्यवाणी पूरी की (34, 35)
गेहूँ और जंगली पौधों का मतलब समझाया (36-43)
छिपा खज़ाना और बेशकीमती मोती (44-46)
बड़ा जाल (47-50)
खज़ाने से नयी और पुरानी चीज़ें (51, 52)
यीशु अपने इलाके में ठुकराया गया (53-58)
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याजक, यीशु को मार डालने की साज़िश करते हैं (1-5)
यीशु के सिर पर तेल उँडेला गया (6-13)
आखिरी फसह और यीशु के साथ विश्वासघात (14-25)
प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत (26-30)
यीशु ने बताया, पतरस उसका इनकार करेगा (31-35)
यीशु गतसमनी में प्रार्थना करता है (36-46)
यीशु की गिरफ्तारी (47-56)
महासभा के सामने मुकदमा (57-68)
पतरस, यीशु को जानने से इनकार करता है (69-75)