भले कार्य आनन्द देते हैं
कुछ समय पहिले प्रहरीदुर्ग के प्रकाशकों को निम्नलिखित पत्र मिला:
“श्री महोदय:
पिछले महिने फ़िलेदेलफ़िया में मेरी किशोर बेटी के बस्ते से उसका बटुआ चोरी हो गया। पिछले सप्ताह उसको डाक द्वारा एक छोटा पार्सल मिला जिसमें उसका बटुआ, लाइसन्स और अन्य आवश्यक कार्ड थे। यह पार्सल एक ऐसे व्यक्ति ने भेजा जो अपना परिचय नहीं देना चाहता था, परन्तु पार्सल में आपका प्रहरीदुर्ग प्रकाशन की एक प्रति भी थी। जिस किसी ने भाईचारे का प्रेम प्रदर्शित करके यह कार्य किया (भाईचारे के प्रेम के नगर में) उसने मेरी बेटी का बटुआ लौटाने के लिए काफी परेशानी उठाई और खर्चा किया। मेरा परिवार और मैं इस भले व्यक्ति के आभारी हैं . . . यह “शाक्षी” देने का बहुत अच्छा तरीका था, खासकर मेरे किशोर बच्चों को (जो तीन हैं)।”
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