क्या आप एक स्नेही जनक हैं?
क्या आप अपने बच्चों से प्रेम करते हैं? क्या आप उन पर गर्व करते हैं? क्या आप महसूस करते हैं कि हरेक बच्चा विशिष्ट, बेजोड़, अद्वितीय व्यक्ति है? अधिकांश माता-पिता करते हैं। लेकिन क्या आप अपने बच्चों को बताते हैं कि आप ऐसा महसूस करते हैं? जब वे कुछ कार्य अच्छी तरह करते हैं क्या आप सुस्पष्ट रूप से उनकी सराहना करते हैं? और क्या आप अन्य तरीकों से—कोमल चुलबुलाहट, आश्वासनपूर्ण स्पर्श, प्रेमपूर्ण आलिंगनों से स्नेह व्यक्त करते हैं?
कुछ लोग आपत्ति उठा सकते हैं, “लेकिन यह मेरा तरीक़ा है ही नहीं। मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में इतना स्पष्ट नहीं हूँ।” यह सच है कि सभी जन स्वभाव से भावप्रदर्शक नहीं होते। फिर भी, अपने बच्चों के प्रति स्नेह व्यक्त करना जितना आपने सोचा होगा शायद उससे कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो।
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ने १९५१ में ४०० बालविहार बच्चों पर किए गए अध्ययन पर अधिक कार्यवाई की। जिन ९४ पुरुष और स्त्रियों को वे ढूँढ सके, उन में उन्होंने कुछ विशिष्ट नमूने पाए। द न्यू यॉर्क टाइम्स् के अनुसार, जिन बच्चों के स्नेही, कोमल माता-पिता थे, वे अपने वयस्क जीवन में बेहतर रूप से सफल होने की ओर प्रवृत्त थे। मूल रूप से उनके विवाह सफल थे, उन्होंने बच्चों को बड़ा किया, अपने काम में आनन्द लिया, और घनिष्ट मित्रता क़ायम रखी। डॉ. कैरल फ्राँज़, जिसने अध्ययन की अगुआई की, ने समाचार पत्र को बताया कि उन लोगों ने “मनोवैज्ञानिक तन्दुरुस्ती, और स्वयं अपने प्रति और अपने जीवन के प्रति उत्साह और तृप्ति की भावना प्रकट की।”
इसके विपरीत, फ्राँज़ ने पाया कि “जिनके माता-पिता भावशून्य और तिरस्कारी थे उन्हें बाद में जीवन में हर तरह से—काम में, सामाजिक समंजन में, और मनोवैज्ञानिक तंदरुस्ती में सबसे कठिन समयों का सामना करना पड़ा।” वास्तव में, अध्ययन ने संकेत किया कि लंबे अरसे तक, जनकीय स्नेह का अभाव बच्चों के लिए माता-पिता के तलाक, पियक्कड़पन, या ग़रीबी से भी ज़्यादा हानिकर हो सकता है।
यह बाइबल के निष्कपट विद्यार्थियों के लिए आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। वे भली-भाँति जानते हैं कि यीशु ने बच्चों से कैसा बरताव किया। वह उनकी क़दर करता, उनको अपने पास बुलाता, और उनके लिए अपने स्नेह को ज़ाहिर करता था। (मरकुस १०:१३-१६; लूका ९:४६-४८; १८:१५-१७) निःसंदेह, इस मामले में वह सिर्फ़ अपने स्वर्गीय पिता का अनुकरण कर रहा था—वह जो अनाथों का पिता बन जाता है। (भजन ६८:५) यहोवा परिपूर्ण जनक है; यह ख़ुशी की बात है कि जो उससे प्रेम करते हैं, उनके अपरिपूर्ण मानव माता-पिता के किसी भी अभाव को वह पूरा कर सकता है।—२ कुरिन्थियों ६:१८.