“मैंने सजग होइए! पढ़ने की परवाह कभी नहीं की”
ये शब्द सैन होसे स्टेट यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया की एक विद्यार्थी के हैं, जो एक पर्यावरण अध्ययन कोर्स कर रही थी। वह आगे कहती है: “मैंने सोचा कि यह पत्रिका मुझसे कहेगी—‘चर्च चले जाओ’ या ‘यहोवा के साक्षी बन जाओ।’ फिर जब मैंने यह अंक (जनवरी ८, १९९६, ‘ख़तरे में हमारा ग्रह—क्या इसे बचाया जा सकता है?’, अंग्रेज़ी) पढ़ा तो मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि इसमें एकदम वास्तविकता बताई गई थी! लेख में ‘विश्व की कुछ बड़ी पर्यावरण समस्याओं’ का नक़्शा दिया गया था। उस नक़्शे में ऐसी जगहें दी गई हैं जो जंगलों की कटाई, ज़हरीले कूड़े-करकट, पर्यावरण प्रदूषण, पीने के पानी की कमी, विलुप्त होते जानवरों और भूक्षरण जैसी समस्याओं से पीड़ित हैं।
“मुझे अभी तक बच्चे नहीं हैं, नहीं तो मैं चिंता करती कि क्या उनके साँस लेने के लिए साफ़ हवा है, खेलने के लिए बग़ीचे हैं, या जीने के लिए पानी है . . . मैं इन लेखों के लिए आपकी प्रशंसा करती हूँ।”
सजग होइए! के हर अंक का वितरण अब ८० भाषाओं में १८३ लाख प्रतियाँ है। इनमें से ५६ भाषाओं में यह पत्रिका एक-ही समय पर प्रकाशित की जाती है। अगर आप यह पत्रिका नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं, तो कृपया अपने इलाक़े के यहोवा के साक्षियों से फ़ोन द्वारा या राज्य गृह में संपर्क कीजिए, अथवा पृष्ठ ५ पर दिए गए निकटतम पते पर लिखिए।