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सजग होइए!–1999
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तूफान के बाद मसीहियत छा गयी

मोजम्बीक में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

मार्च २, १९९८ की शाम मोजम्बीक देश के मापूटो नगर में भारी बारिश और तूफान आया। अगली सुबह चारों ओर तबाही ही तबाही दिख रही थी। समुद्र किनारे पेड़ टूटकर गिरे हुए थे, उफनते पानी से सड़कों को नुकसान पहुँचा था, कुछ घरों की छतें उड़ गयी थीं और दूसरे घर ढह गये थे।

यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर की इमारतें ज्यों-की-त्यों खड़ी थीं। लेकिन एक पड़ोसिन के घर को काफी नुकसान पहुँचा। उसका घर मामूली-सा था। घर का ढाँचा लकड़ी का था और उस पर जस्ते के लहरदार पत्तरे से छत डाली गयी थी। घर बहुत कच्चा था सो तेज़ हवाओं को नहीं झेल सका और ढह गया। खुशी की बात है कि घर के सभी लोग, वह स्त्री और उसके पाँच बच्चे सही-सलामत थे। लेकिन माली तौर पर उनका मानो सब कुछ खत्म हो गया था।

सुबह-सुबह, वॉच टावर सोसाइटी के शाखा दफ्तर के स्वयंसेवी इस परिवार से मिलने गये और देखा कि वे तहस-नहस हुए घर में से अपनी चंद चीज़ें निकाल रहे हैं। उनके माली नुकसान ने उनका दुःख और बढ़ा दिया था क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि अपने घर को फिर से खड़ा कर सकें। घर में आदमी नहीं था सो परिवार की आमदनी बहुत कम थी जो उन्हें नज़दीकी बाज़ार में खाने की चीज़ें बेचकर मिलती थी।

स्थिति का जायज़ा लेने के बाद, यहोवा के साक्षियों ने जल्द ही मदद करने का फैसला किया। यह तय किया गया कि टूटे घर की बची-खुची निर्माण-सामग्री दोबारा काम नहीं आएगी। सो स्वयंसेवियों के एक दल ने ज़रूरी सामान लिया और एक छोटा-सा मज़बूत घर बनाने में लग गये।

शुरू-शुरू में पड़ोसियों को अजीब लगा, लेकिन जल्द ही वे यह देखकर हैरान रह गये कि काम कितनी तेज़ी से आगे बढ़ा है। पाँच दिन के अंदर घर की मरम्मत का काम पूरा हो चुका था और वह रहने के लायक बन गया था। जब उस स्त्री ने अपने नये घर में प्रवेश किया तो उसे कुछ सूझा नहीं कि क्या कहे। लेकिन कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं थी, क्योंकि स्वयंसेवियों को उस स्त्री और उसके बच्चों के मुसकराते चेहरों और गहरे आभार से भरी उनकी आँखों से झलकती खुशी साफ नज़र आ रही थी।

स्वयंसेवी भी खुश थे। वे खुश थे कि उन्हें व्यावहारिक रूप से यह दिखाने का अवसर मिला कि वे सच्चे मसीही हैं।—गलतियों ६:१०.

[पेज 13 पर तसवीर]

मार्च ५

मार्च ६

मार्च ७

पड़ोस के साक्षियों ने इस परिवार के घर की मरम्मत की

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