किशोर उम्र में होनेवाली निराशा पर काबू पाना
मेक्सिको में एक अँग्रेज़ी कोर्स करनेवाले विद्यार्थियों को अपने किसी पसंदीदा विषय पर भाषण तैयार करने के लिए कहा गया। उनमें से मॉरिट्ज़ा नाम की एक विद्यार्थी कहती हैः “कुछ समय पहले मैं मायूसी-भरे दौर से गुज़र रही थी और तभी 8 सितंबर, 2001 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में ‘निराश किशोरों के लिए मदद,’ इस विषय पर दिए श्रृंखला-लेखों ने मेरी काफी मदद की थी। इसलिए मैंने उसी पत्रिका से जानकारी लेते हुए अपना भाषण पेश किया, जिसके लिए मुझे सबसे ज़्यादा नंबर मिले। बाद में मैंने अपने टीचरों और साथ पढ़नेवाले विद्यार्थियों को उन लेखों की एक-एक कॉपी दी।”
दो साल बाद, जब मॉरिट्ज़ा घर-घर प्रचार कर रही थी, तब उसे एक विद्यार्थी मिली जो वही अँग्रेज़ी कोर्स कर रही थी। जब उस लड़की ने मॉरिट्ज़ा को सजग होइए! पत्रिका के श्रृंखला-लेखों की वह कॉपी दिखायी जिसमें निराश किशोरों के बारे में जानकारी दी गयी है, तो मॉरिट्ज़ा बिलकुल हैरान रह गयी। ऐसा लगता है कि एक टीचर को वे लेख इतने अच्छे लगते हैं कि वह अपने हर विद्यार्थी को उन लेखों की एक-एक कॉपी देती है।
किशोर उम्र में होनेवाली निराशा का सामना कैसे किया जा सकता है, इस बारे में और भी जानकारी आप किताब युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर में पा सकते हैं। उसमें कई अलग-अलग विषय दिए गए हैं, जैसे “मैं अपने आपको पसन्द क्यों नहीं करता?,” “मैं इतना हताश क्यों हो जाता हूँ?,” “मैं अपना अकेलापन कैसे दूर करूँ?” इस किताब के बारे में ज़्यादा जानकारी पाने के लिए, आप इस कूपन को भरकर इस पत्रिका के पेज 5 पर दिए किसी भी नज़दीकी पते पर भेज सकते हैं। (g 4/08)
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