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  • यहोवा ने हमारी सृष्टि क्यों की?
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la भाग 6 पेज 20-21

भाग 6

यहोवा ने हमारी सृष्टि क्यों की?

राजा सुलैमान

ज़िंदगी का मकसद जानने के लिए राजा सुलैमान ने काफी खोजबीन की

यहोवा को जानना आपके लिए क्या मायने रखेगा? इसका मतलब यह होगा कि दूसरी कई बातों के अलावा आप एक ऐसे सवाल का जवाब पाएँगे, जिसने करोड़ों लोगों को उलझन में डाल रखा है: ‘मैं दुनिया में क्यों आया हूँ?’ ज़िंदगी में कभी-न-कभी आपने भी इस सवाल के बारे में ज़रूर सोचा होगा। ज़िंदगी के मकसद से जुड़े इसी सवाल के बारे में एक बुद्धिमान राजा ने, जो अपने समय के “सब राजाओं से बढ़कर” धनी था, काफी खोजबीन की। (2 इतिहास 9:22; सभोपदेशक 2:1-13) वह राजा था सुलैमान, जिसके पास ज़बरदस्त ताकत, बेशुमार दौलत और बेजोड़ बुद्धि थी। उसकी खोजबीन का क्या नतीजा निकला? वह बताता है: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभोपदेशक 12:13) सुलैमान हम में से बहुतों से कहीं ज़्यादा तजुर्बेकार था इसलिए वह जिस नतीजे पर पहुँचा, उस पर हम कम-से-कम ध्यान तो दे सकते हैं।—सभोपदेशक 2:12.

2 सुलैमान ने परमेश्‍वर के भय का जो ज़िक्र किया, उसका मतलब यह नहीं कि हमें किसी अनजानी आत्मिक शक्‍ति का खौफ खाते हुए जीना है। बल्कि इसका मतलब है अपने किसी अज़ीज़ के लिए गहरी श्रद्धा रखना, उसे नाराज़ करने से डरना। अगर आप किसी को जान से प्यार करते हैं, तो आप ज़रूर उसे हर वक्‍त खुश करना चाहेंगे और हरगिज़ ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे वह नाराज़ हो। जब आपके दिल में यहोवा के लिए गहरा प्यार बढ़ेगा, तो आप उसके लिए भी ऐसा ही महसूस करेंगे।

3 बाइबल पढ़कर आप जान सकते हैं कि हमारे सिरजनहार की पसंद-नापसंद क्या है, और यह भी कि उसने पृथ्वी को किस मकसद से बनाया था। बाइबल बताती है कि यहोवा ने “पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह 45:18) यहोवा ने पृथ्वी को इंसान के रहने के लिए तैयार किया था। और इंसानों को पृथ्वी की और उस पर रहनेवाले सभी जीव-जंतुओं की देखभाल करनी थी। (उत्पत्ति 1:28) मगर क्या इंसानों को बनाने में यहोवा का सिर्फ यही मकसद था—कि वे निगरानी का काम करें?

आदम और हव्वा

आदम और हव्वा का परमेश्‍वर के साथ एक बढ़िया रिश्‍ता था

4 नहीं, इंसान को बनाने में परमेश्‍वर का इससे भी कहीं महान उद्देश्‍य था। पहले पुरुष, आदम का यहोवा के साथ एक बढ़िया रिश्‍ता था। आदम, सिरजनहार से सीधे-सीधे बातचीत कर सकता था। वह यहोवा की बात सुन सकता था, साथ ही अपने विचार उसे बता सकता था। (उत्पत्ति 1:28-30; 3:8-13; 16-19; प्रेरितों 17:26-28) इसलिए आदम और उसकी पत्नी, हव्वा के पास यहोवा को और बेहतर जानने और उसके साथ एक गहरा रिश्‍ता कायम करने का सुनहरा मौका था। यहोवा को जानने और उसकी मिसाल पर चलने से वे हमेशा खुशहाल ज़िंदगी जीते क्योंकि वह “आनन्दित परमेश्‍वर” है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) यहोवा “हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से” देनेवाला परमेश्‍वर है, इसलिए उसने पहले इंसान को एक फिरदौस में रखा, जिसका नाम अदन का बाग था। और आदम के पास हमेशा-हमेशा तक ज़िंदा रहने की आशा थी।—1 तीमुथियुस 6:17; उत्पत्ति 2:8, 9, 16, 17.

टेलोमेर और क्रोमोसोम

इंसान की कोशिका के बारे में हाल में की गयी खोजों से क्या पता चला है?

5 क्या, हमेशा-हमेशा तक? आप शायद सोचें कि हमेशा जीने का ख्याल बिलकुल बेतुका है और इस पर बात करना फिज़ूल है। मगर क्या यह सचमुच बेतुकी बात है? वैज्ञानिक मानते हैं कि अब उन्होंने पता कर लिया है कि हमारी कोशिकाओं के बूढ़ा होकर मर जाने की वजह क्या है? जब कभी हमारी एक कोशिका विभाजित होती है, तो हर क्रोमोसोम के अंतिम सिरे पर रहनेवाला अनुवांशिक पदार्थ, टेलोमेर छोटा होता जाता है। एक कोशिका के 50 से 100 बार विभाजित होने के बाद, टेलोमेर खत्म हो जाता है और इस तरह कोशिकाएँ विभाजित होना बंद कर देती हैं। लेकिन हाल में की गयी वैज्ञानिकों की खोजों से पता चला है कि टेलोमेरेस नाम के एक एंज़ाइम की मदद से इंसान की कोशिकाएँ दोबारा विभाजित करना शुरू कर सकती हैं। हालाँकि इस खोज का मतलब यह नहीं कि यहोवा इंसान को हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए इसी एंज़ाइम का इस्तेमाल करेगा, मगर यह इस बात की तरफ ज़रूर इशारा करता है: हमेशा की ज़िंदगी का ख्याल एक बेतुकी बात नहीं है!

6 जी हाँ, बाइबल में दिया गया यह वृत्तांत भरोसेलायक है कि परमेश्‍वर ने पहले पति-पत्नी को हमेशा तक ज़िंदा रहने के लिए बनाया था। और इंसानों को अनंतकाल तक यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता और भी पक्का करते जाना था। उन्हें स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ एक मज़बूत बंधन कायम करना था और पृथ्वी पर इंसानों के लिए उसके मकसद को हमेशा मन में रखकर उसको पूरा करते जाना था। आदम और हव्वा को एक नीरस ज़िंदगी नहीं बितानी थी। उन्हें पृथ्वी को ऐसी संतान से भरने की बढ़िया आशा थी जो सिद्ध होते और खुशहाल ज़िंदगी बिताते। उनके पास हमेशा-हमेशा के लिए ऐसा काम होता जिससे उन्हें प्रतिफल और खुशी मिलती। उनकी ज़िंदगी वाकई संतोष से भरी रहती!—उत्पत्ति 1:28.

आप क्या सोचते हैं?

  1. 1. ज़िंदगी के मकसद के बारे में सुलैमान किस नतीजे पर पहुँचा?

  2. 2. परमेश्‍वर का भय मानने का मतलब क्या है?

  3. 3. यहोवा ने इंसानों की सृष्टि किस मकसद से की थी?

  4. 4. इंसान कैसे संतोष से भरी ज़िंदगी जी सकता था?

  5. 5, 6. हमेशा की ज़िंदगी के बारे में आप क्या सोचते हैं और इसकी वजह क्या है?

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