गीत 140
पायनियर की ज़िंदगी
दिन न-या फिर उ-गा, हो-गा रौ-शन ज-हाँ
आँ-खें हैं अध-खु-ली,
पर हम कर-ते दु-आ,
या-ह से।
ले मुस्-कान हों-ठों पे, लो-गों से हैं मिल-ते।
आ-ते-जा-ते क-ई,
पर हम रह-ते ख-ड़े, व-हीं पे।
(कोरस)
चु-नी राह ये हम ने,
जी-एँ याह के लि-ए,
हम क-रें-गे वो जो भी क-हे।
र-हे धूप या बर-खा,
सब स-हें-गे स-दा।
यूँ दि-खा-एँ-गे याह के लि-ए
प्यार अप-ना।
लो अब फिर दिन ढ-ला, सो च-ला ये ज-हाँ।
थक ग-ए, पर हैं ख़ुश,
कर-ते हम या-ह का
शु-क्रि-या!
अप-नी ये ज़िं-द-गी ल-गे प्या-री ह-में
कि मिल-ती हैं हर दिन
कित-नी ही आ-शी-षें या-ह से।
(कोरस)
चु-नी राह ये हम ने,
जी-एँ याह के लि-ए,
हम क-रें-गे वो जो भी क-हे।
र-हे धूप या बर-खा,
सब स-हें-गे स-दा।
यूँ दि-खा-एँ-गे याह के लि-ए
प्यार अप-ना।
(यहो. 24:15; भज. 92:2; रोमि. 14:8 भी देखिए।)