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गीत 140

पायनियर की ज़िंदगी

छपा हुआ संस्करण

(सभोपदेशक 11:6)

  1. दिन न-या फिर उ-गा, हो-गा रौ-शन ज-हाँ

    आँ-खें हैं अध-खु-ली,

    पर हम कर-ते दु-आ,

    या-ह से।

    ले मुस्‌-कान हों-ठों पे, लो-गों से हैं मिल-ते।

    आ-ते-जा-ते क-ई,

    पर हम रह-ते ख-ड़े, व-हीं पे।

    (कोरस)

    चु-नी राह ये हम ने,

    जी-एँ याह के लि-ए,

    हम क-रें-गे वो जो भी क-हे।

    र-हे धूप या बर-खा,

    सब स-हें-गे स-दा।

    यूँ दि-खा-एँ-गे याह के लि-ए

    प्यार अप-ना।

  2. लो अब फिर दिन ढ-ला, सो च-ला ये ज-हाँ।

    थक ग-ए, पर हैं ख़ुश,

    कर-ते हम या-ह का

    शु-क्रि-या!

    अप-नी ये ज़िं-द-गी ल-गे प्या-री ह-में

    कि मिल-ती हैं हर दिन

    कित-नी ही आ-शी-षें या-ह से।

    (कोरस)

    चु-नी राह ये हम ने,

    जी-एँ याह के लि-ए,

    हम क-रें-गे वो जो भी क-हे।

    र-हे धूप या बर-खा,

    सब स-हें-गे स-दा।

    यूँ दि-खा-एँ-गे याह के लि-ए

    प्यार अप-ना।

(यहो. 24:15; भज. 92:2; रोमि. 14:8 भी देखिए।)

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