शासी निकाय का खत
प्यारे भाइयो और बहनो:
जैसा कि आप जानते हैं, बाइबल एक ऐसी किताब है जिसमें कई लोगों की दास्तान दर्ज़ है। इनमें से कई वफादार स्त्री-पुरुषों ने उन्हीं मुश्किलों का सामना किया, जिनका हम आज सामना करते हैं। उनकी भी “हमारे जैसी भावनाएँ थीं।” (याकूब 5:17) उनमें से कुछ लोग चिंताओं के बोझ तले दबे हुए थे, तो कुछ को अपने परिवारवालों या यहोवा के दूसरे उपासकों की बातों से ठेस पहुँची थी। और कई ऐसे भी थे जो अपनी गलतियों की वजह से दोषी महसूस कर रहे थे।
इन मुश्किलों की वजह से ये लोग यहोवा से दूर चले गए थे। लेकिन क्या उन्होंने यहोवा को पूरी तरह छोड़ दिया था? नहीं, ऐसा नहीं था। इनमें से कई लोग एक भजन के लिखनेवाले की तरह थे, जिसने प्रार्थना की, “मैं एक खोयी हुई भेड़ की तरह भटक गया हूँ। तू अपने सेवक को खोज, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाएँ नहीं भूला हूँ।” (भजन 119:176) क्या आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं?
यहोवा अपनी उन भेड़ों को कभी नहीं भूलता, जो झुंड से दूर चली जाती हैं। इसके बजाय, वह उनकी मदद करने के लिए कोई-न-कोई कदम ज़रूर उठाता है। कई बार वह अपने सेवकों के ज़रिए ऐसा करता है। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि यहोवा ने अपने सेवक अय्यूब की किस तरह मदद की। अय्यूब ने अपनी ज़िंदगी में एक-के-बाद-एक कई मुश्किलों का सामना किया, जैसे आर्थिक समस्या, अज़ीज़ों की मौत और गंभीर बीमारी। यही नहीं, इस मुश्किल घड़ी में जिन लोगों को उसका साथ देना चाहिए था, उन्होंने ही उससे चुभनेवाली बातें कहीं। हालाँकि कुछ वक्त के लिए अय्यूब की सोच बिगड़ गयी थी, फिर भी उसने कभी यहोवा से मुँह नहीं मोड़ा। (अय्यूब 1:22; 2:10) यहोवा ने उसे अपनी सोच सुधारने में कैसे मदद दी?
एक तरीका था अपने सेवक एलीहू को उसके पास भेजकर। जब अय्यूब ने उसे अपनी चिंताएँ बतायीं, तो एलीहू ने ध्यान से उसकी सुनी। फिर एलीहू ने क्या किया? क्या उसने अय्यूब को बुरा-भला कहा? उसकी सोच सुधारने के लिए उसे शर्मिंदा या दोषी महसूस करवाया? क्या उसने यह जताया कि वह अय्यूब से बेहतर है? बिलकुल नहीं! इसके बजाय परमेश्वर की पवित्र शक्ति से उभारे जाकर एलीहू ने अय्यूब से कहा, “सच्चे परमेश्वर के सामने मैं तेरे जैसा हूँ, मैं भी मिट्टी का बना हूँ।” फिर उसने उसे यकीन दिलाया, “तू मुझसे मत डर, मेरी बातें इतनी भारी न होंगी कि तुझे कुचल दें।” (अय्यूब 33:6, 7) अय्यूब का बोझ बढ़ाने के बजाय एलीहू ने प्यार से उसे समझाया और सुधारा। उसने अय्यूब को वह हौसला दिया जिसकी उसे बहुत ज़रूरत थी।
यह ब्रोशर तैयार करने के लिए हमने भी यही तरीका अपनाया है। सबसे पहले, हमने ऐसे कई लोगों की बातें ध्यान से सुनीं, जो यहोवा से दूर चले गए थे। हमने ध्यान दिया कि उनके हालात कैसे थे और उन्होंने किन शब्दों में अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कीं। (नीतिवचन 18:13) फिर हमने बाइबल की कुछ मिसालों पर गौर किया, जिन्होंने इसी तरह के हालात का सामना किया था और इस बात पर ध्यान दिया कि यहोवा ने कैसे उनकी मदद की। आखिर में हमने इन पुराने ज़माने की और आज के ज़माने की मिसालों को मिलाकर यह ब्रोशर तैयार किया। हम आपको बढ़ावा देते हैं कि आप यह ब्रोशर पढ़ें। और यकीन रखिए, हम आपसे बहुत प्यार करते हैं।
यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय