यीशु का जन्म—केवल एक दन्तकथा?
मसीह का जन्म! इसे ईसाईजगत् का सब से बड़ा वार्षिक उत्सव का आधार कहा गया है। किन्तु, व्यंग्यात्मक रूप से, कई पादरी यीशु के जन्म के बाइबल वृत्तान्तों के विभिन्न पहलुओं की उपेक्षा करते हैं। उदाहरणार्थ, ज्योतिषियों या “बुद्धिमान पुरुषों” से सम्बन्धित मत्ती के वृत्तान्त के बारे में द इन्टरप्रेटर्स बाइबल कहती है: “इस तरह यह निश्चित करने के लिए कोई तरीका नहीं कि इस में नमक-मिर्च मिलायी गयी है या एक वास्तविक तथ्य की बात के रूप में यह “हुई” भी थी या नहीं। इस वृत्तान्त का मूल्य और महत्व उसकी यथार्थता पर निर्भर नहीं; इस कहानी को एक कालकृति के रूप में सोचना और ठीक होगा।”
कुछ आलोचक बहुधा तर्क करते हैं कि सुसमाचार वृत्तान्तों में मसीह के जन्म को ऐतिहासिक समझने के लिए विवरणों की बहुत कमी है। लेकिन अपनी पुस्तक द लाइफ ॲन्ड टाइम्स ऑफ जीज़स द मसाया में आल्फ्रेड एडरशिम इसका खण्डन करते हुए कहता है: “यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि ऐसी एक (कल्पित) घटना के बारे में कोई भी अप्रामाणिक या कल्पित वृत्तान्त विस्तृत विवरणों की ऐसी कमी या अनुपस्थिति से वर्णित नहीं। क्योंकि दो आवश्यक विशेषताएं जो दन्तकथा और परम्परा के लिए समान है, यह कि वे हमेशा उनके नायकों को अद्वितीय महिमा से घेरना चाहते हैं और वे ऐसे वर्णन प्रदान करते हैं जो अन्यथा नामौजूद है।
फिर ये सुसमाचार वृत्तान्त यीशु के जन्म के बारे में क्यों इतने कम विस्तृत वर्णन देते हैं? मुख्यतः, इसलिए कि उसकी मृत्यु का न कि उसके जन्म का अत्यन्त महत्त्व है। (मत्ती २०:२८) एडरशिम हमें आगे याद दिलाता है: “सुसमाचार वृत्तान्तों का यीशु का जीवनचरित्र प्रदान करने का उद्देश्य नहीं था ना ही उसके लिए सामग्री देना; लेकिन उनका केवल यही दोहरा लक्ष्य था; कि वे जो उन्हें पढ़ेंगे ‘विश्वास करे कि यीशु मसीह है, परमेश्वर का पुत्र है, और यह कि विश्वास करने से वे ‘उसके नाम के द्वारा जीवन पा सके।’”