क्या हम उन्हें दोबारा कभी देखेंगे?
“तुम ने हमें हमेशा के लिए छोड़ दिया है। यह कितना अनपेक्षित था। लेकिन उस गहरी चोट के बावजूद, जो तुम्हारी मृत्यु के कारण मिली है, हमारे दिलों में तुम हमेशा ही रहोगे। हम न उन सुन्दर वर्षों को कभी भूलेंगे जो हमने तुम्हारे साथ बिताए और ना ही तुम से एक दिन दोबारा मिलने की आशा छोड़ देंगे।”
लक्समबर्ग के महान डची में, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के बाद समाचारपत्रों में प्रकाशित होनेवाली स्मारक नोटिसों में, उत्तरजीवित परिवार और मित्र वारंवार ऐसी भावनाएं व्यक्त करते हैं। विश्व भर दूसरों के मन में भी समान विचार हैं, यादों के स्नेही ख़याल, और साथ ही उनके मरहूम होने की वजह से उदासी-भरी निराशा—अनिश्चय से मिश्रित आशा। आप ने भी ऐसी प्रतिक्रियाओं का अनुभव किया होगा या किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक मित्र से इनके बारे में सुना होगा।
अधिकांश लोगों के लिए, अपने मरे हुए प्रिय जनों को दोबारा देखने की आशा संभ्रमित और अस्पष्ट है। इसके कारण साफ़ हैं। पहली बात तो यह है, कि आजकल मुश्किल से कोई अपने आप को इस विषय में अवगत कराने के लिए समय निकालता है। और जब कोई ऐसा करने की कोशिश भी करे, तब अधिकांश धर्मों द्वारा दी गयी जानकारी या तो बहुत धुँधली-सी होती है या फिर इतनी अनोखी, कि विश्वास करना मुश्किल हो जाता है।
जैसा कि आप शायद जानते होंगे, बहुतों की राय में मृतकों के लिए वह एकमात्र “भावी जीवन” उनके पारिवारिक वंशावली का जारी रहना है। आपने इस दृष्टिकोण के बारे में सुना होगा कि लोग ‘अपने बच्चों में जीवित रहते हैं।’ लेकिन क्या ऐसे “जीवन” से उन मृतकों को कोई सचेतन लाभ या उनके उत्तरजीवितों को कोई आशा मिलती है? बिल्कुल नहीं! तो दरअसल ऐसे दृष्टिकोण से बहुत कम सांतवना मिलती है!
हमारे अपने प्रिय जनों, दोनों जो मर चुके हैं और जो अब जीवित हैं, की परवाह करने के कारण हमें इन सवालों के जवाब मिलना ज़रूरी है: अगर ऐसा कोई मर जाता है जिनसे हम प्रेम करते हैं, तो क्या हम उसे दोबारा कभी देखेंगे? अगर जवाब हाँ में है, तो यह कब और कहाँ होगा? स्वर्ग में? या फिर इस पृथ्वी पर भी? सचमुच, भविष्य में खुद हमारे लिए और हमारे मरे हुए प्रिय जनों के लिए क्या आशा है?
खुलकर कहें तो, इन सवालों के सम्बन्ध में अच्छी ख़बर है। यह इस अर्थ से अच्छी है कि यह एक सुनिश्चित, आह्वादक आशा है। यह इसलिए नयी ख़बर बनती है, कि यह संदेश उन सब संदेशों से अलग है जो अधिकांश लोगों ने सुना है, धार्मिक सूत्रों से भी।
हमारे सामान्य युग की पहली सदी में जब मसीही मिशनरी पौलुस अथेने, ग्रीस, में था, उसने मृतकों के लिए शास्त्रीय आशा के बारे में बात की। कुछ सुननेवाले जिज्ञासु थे, लेकिन दूसरों ने घृणा से सुना। कुछेक तत्वज्ञानी उसके साथ विवादात्मक वार्तालाप करना चाहते थे, और उन्होंने कहा: “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” दूसरों ने यह दावा किया कि वह “‘अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है’, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था।” (प्रेरितों के काम १७:१८) जी हाँ, उस सुसमाचार में, जो पौलुस को कहना था, पुनरुत्थान शामिल था!
आप एक भावी पुनरुत्थान—मृतकों को दोबारा जीवित देखने के विषय पर बातचीत किस दृष्टि से देखेंगे? क्या यह व्यर्थ बकबक होगी? या, आपके धार्मिक शिक्षण और आपके व्यक्तिगत विचारों के कारण, क्या मृतकों के लिए आशा के बारे में पवित्र शास्त्र का संदेश आपको नया और अपरिचित लगता है, मानो वह एक ‘अन्य देवता’ से आ रहा हो?
अथेने के निवासियों ने पौलुस से कहा: “क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्थ क्या है?” (प्रेरितों के काम १७:२०) क्या आप भी हमारे प्रिय मरे हुओं के लिए और स्वयं अपने लिए जो आज जीवित हैं, बाइबल की आशा के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? अगर ऐसा हो, तो निम्नलिखित लेख आपको दिलचस्प लगेगा।