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“सीधा उत्तर देना”

पहाड़ के उपदेश में, यीशु ने “व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ताओं” का उल्लेख किया। इब्रानी शास्त्रों का तीसरा हिस्सा रचनाएँ थी, जिसमें काव्यात्मक किताबें सम्मिलित थीं, जैसे कि भजन संहिता और नीतिवचन। (मत्ती ७:१२; लूका २४:४४) इन में भी परमेश्‍वर की बुद्धि समाविष्ट थी।

उदाहरणार्थ, नीतिवचन में प्राचीन इस्राएल के न्यायाधीशों को चेतावनी दी गयी: “जो दुष्ट से कहता है: ‘तू निर्दोष है,’ उसको तो हर समाज के लोग शाप देंगे और जाति जाति के लोग धमकी देंगे। परन्तु जो लोग दुष्ट को डाँटेंगे, उनका भला होगा, और उत्तम से उत्तम आशीर्वाद उन पर आएगा। जो सीधा उत्तर देता है, वह होठों को चूमेगा।”—नीतिवचन २४:२४-२६, न्यू.व.

अगर एक न्यायाधीश ने घूसखोरी या भाई-भतीजावाद के दबावों में आकर दुष्ट व्यक्‍ति को निर्दोष ठहरा दिया, तो दूसरे लोग उसे उसके पद के लिए अयोग्य समझते। अजी, जो कोई मूर्तिपूजक “जाति जाति के लोग” इस क़ानूनी दुष्करण के बारे में सुनते, वे भी तिरस्कार से प्रतिक्रिया दिखाते! दूसरी ओर, अगर एक न्यायाधीश ने निडर होकर दुष्ट व्यक्‍ति को डाँट दिया और जो मुक़द्दमा उसके हाथ में है, उसके विषय में उसने सीधा उत्तर दिया, तो वह लोगों का आदर और प्रेम जीत लेगा। आम लोग उसे “उत्तम से उत्तम आशीर्वाद” देने के लिए प्रेरित होते। जैसे कि नीतिवचन और आगे कहता है: “जो सीधा उत्तर देता है, वह होठों को चूमेगा।”

ऐसे चुम्भन से परस्पर आदर सूचित होता था—सलाहकार और उन लोगों के बीच जो उसकी सीधी डाँट का अनुपालन कर रहे थे। शायद जिसे डाँटा जा रहा था, वह भी अनुकूल रूप से प्रतिक्रिया दिखाता और न्यायाधीश के लिए अपना स्नेह व्यक्‍त करता। नीतिवचन २८:२३ कहता है: “जो किसी मनुष्य को डाँटता है वह अन्त में चापलूसी करनेवाले से अधिक प्यारा हो जाता है।” इसलिए आज जो व्यक्‍ति मण्डली के प्राचीनों के तौर से सेवा करते हैं, उन्हें दोस्ती या पारिवारिक रिश्‍तों को अपना न्याय भ्रष्ट करने देने से बचे रहना चाहिए। आवश्‍यक सलाह को सीधे रूप से देकर, प्राचीन मण्डली का आदर जीतेंगे।

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