क्या आपको याद है?
क्या आपने हाल के प्रहरीदुर्ग अंकों को व्यावहारिक रूप से फ़ायदेमंद पाया है? तो क्यों न आप निम्नलिखित प्रश्नों से अपनी याददाश्त आज़माएं?
◻ शैतान के धूर्त और चालाक कार्यों का सामना करने का एक तरीक़ा क्या है?
शैतान का सामना करने के लिए, हमें अपने आप की जाँच करना आवश्यक है। क्या हम में ऐसी कोई कमज़ोरी है जिसका फ़ायदा शैतान उठा सकता है या ठीक अभी उठा रहा है? उदाहरणार्थ: क्या हमें अहंमन्यता की समस्या है? क्या हम हमेशा प्रथम रहना चाहते हैं? अगर हम अपने आप को पहचानते हैं, तब हम ऐसी समस्याओं को सुधार सकते हैं, बशर्ते कि हम नम्र हैं। इस तरीक़े से हम शैतान के सामने अपने आप को अरक्षित न छोड़ेंगे।—१२/१, पृष्ठ १०, ११.
◻ प्रेरित पतरस का क्या मतलब था जब उसने कहा कि हमें “तन मन लगाकर एक दूसरे से तीव्रता से प्रेम” रखना चाहिए? (१ पतरस १:२२)
“तीव्रता से” का मतलब अक्षरशः “तानते हुए” है। मसीहियों के बीच ऐसा प्रेम व्यक्त होने के लिए प्रयास और अपने हृदय को चौड़ा करना आवश्यक होता है ताकि इस में वे लोग भी बस जाएँ जिन से हम सामान्य रूप से आकर्षित नहीं होते।—१२/१, पृष्ठ १६.
◻ सात प्रगतिशील ईश्वरीय वाचाएँ क्या हैं, जिनके कारण हम सब को अनन्त आशीर्वाद मिलेंगे?
अदनी वाचा, इब्राहीमी वाचा, व्यवस्था वाचा, मेलकीसेदेक के समान याजक बनने की वाचा, दाऊदी राज्य वाचा, नयी वाचा और राज्य वाचा।—२/१, पृष्ठ १९.
◻ परमेश्वर ने अस्थायी रूप से व्यवस्था वाचा को इब्राहीमी वाचा से क्यों जोड़ दिया?
व्यवस्था वाचे से यह साबित हुआ कि इस्राएली लोग पापी थे, और इन्हें एक स्थायी याजक और पूर्ण बलिदान की ज़रूरत थी। इस से वंश की वंशावली सुरक्षित रखी गयी और इस से वंश को पहचानने की मदद हुई। इस ने यह भी दिखाया कि एक दिन परमेश्वर की राजा-याजकों की एक जाति होती।—२/१, पृष्ठ १६.
◻ एक सफल विवाह का आधार क्या है?
पति-पत्नी को परस्पर प्रेम, आदर, और वफ़ादारी दिखानी चाहिए, तथा एक दूसरे के सद्गुणों की क़दर करनी चाहिए, और एक दूसरे की कमज़ोरियों की अनदेखी करके उन्हें माफ़ करने के लिए सीखना चाहिए।—४/१, पृष्ठ २१.
◻ कोडेक्स साइनाइटिकस् क्या है, और यह कितना महत्त्वपूर्ण है?
कोडेक्स साइनाइटिकस् में संपूर्ण यूनानी शास्त्र हैं और इब्रानी शास्त्रों के कुछ हिस्सों का एक यूनानी अनुवाद। यह कम से कम १,६०० साल पुराना है, और यह बाइबल हस्तलिपियों की हमारी तालिका में एक अत्यावश्यक कड़ी बनती है।—४/१, पृष्ठ ३०, ३१.