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  • एक नयी दुनिया क़रीब है!
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w92 1/1 पेज 6-7

एक नयी दुनिया क़रीब है!

इस दुनिया की बीमारियों को ठीक करने के लिए प्रस्तावों की भरमार है। आम तौर से, इन से परवाह और सहयोग, और साथ ही, दुनिया भर के सभी राष्ट्रों द्वारा एक बहुत बड़ा समन्वित प्रयास आवश्‍यक हो जाता है। एक ऐसी भावना है कि जैसे-जैसे स्थितियाँ बिगड़ती जाती हैं, वैसे-वैसे पारस्पारिक संरक्षण की ज़रूरत से सभी राष्ट्र अपनी प्राथमिकताओं की पुनःजाँच करने और मिलकर एक नयी और पोषणीय दुनिया बनाने के लिए मजबूर किए जाएँगे। यह कल्पना की जाती है कि पर्यावरण के ख़तरों से निपटने हेतु साधन को इस्तेमाल करने के पक्ष में फ़ौजी बजटों को भारी रूप से घटा दिया जाएगा और, जैसा स्टेट ऑफ द वर्ल्ड १९९० में ग़ौर किया गया है, “खुद अपनी बड़ी रक्षा व्यवस्थाओं को बनाए रखने के बजाय, सरकारें यू.एन. (संयुक्‍त राष्ट्र संघ) के अत्याधिक मात्रा में विस्तृत और सबल किए गए शान्ति दल पर निर्भर होंगी, एक ऐसा दल जिसे किसी भी सदस्य राष्ट्र के उसके आक्रामक के ख़िलाफ़ रक्षा करने की ताक़त और अधिकार होगा।”

लेकिन ऐसे मनसूबे उन परिस्थितियों को लाने में बहुत ही कम पड़ते हैं, जो कि हमारे आरंभिक पन्‍नों पर सूचिबद्ध किए गए थे और जिनके लिए लोग तरसते हैं। सिर्फ़ मानवीय योजनाओं से ही मानवीय पापपूर्णता और लोभ को बिल्कुल ही ठीक नहीं किया जा सकता; इन से पूर्वधारणा और जातीय संघर्ष हटा दिए नहीं जाते; इन से सारी मनुष्यजाति में निःस्वार्थ प्रेम पैदा नहीं होता; और न ही इन से रोग और मृत्यु के ख़ात्मे की गारंटी मिलती है। अपराध से प्रभावकारी रूप से निपटा नहीं जाता, और न ही धार्मिक मतभेद और बैर पर विजय पाने का कोई ज़िक्र होता है। और प्रकृतिक विपत्तियों को पूर्ण रूप से हटा देने पर विचार तक नहीं किया जा सकता। समस्याएँ उत्पन्‍न करने की उसकी क्षमता समेत, राष्ट्रीयता को रहने दिया जाता है। तो फिर, दुःख की बात यह है कि हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचना ही पड़ता है कि मनुष्य कोई व्यवहार्य हल ढूँढ़ निकालने में असमर्थ रहे हैं।

फिर भी, हल है! सचमुच, इन सारी बातों को लाने, जिनके लिए मनुष्यजाति तरसती है, प्रतिज्ञा की गयी है, और यह प्रतिज्ञा उस परमेश्‍वर की ओर से आती है “जो झूठ बोल नहीं सकता।” (तीतुस १:२) वह ठीक-ठीक जानते हैं क्या किया जाना चाहिए, और जो उद्देश्‍य उन्होंने किया है, उसे पूरा करने के लिए उन्हें बुद्धि, शक्‍ति और क्षमता है।—प्रकाशितवाक्य ७:१२; १९:१.

परमेश्‍वर प्रतिज्ञा करते हैं: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भाँति देखने पर भी उसको न पाएगा। परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएँगे।”—भजन ३७:१०, ११.

यह किस तरह पूरा किया जाएगा? यशायाह ११:९ में जवाब दिया गया है: “मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” जी हाँ, सारी मनुष्यजाति “यहोवा के ज्ञान” में शिक्षा प्राप्त करेगी, और जो-जो व्यक्‍ति उसके अनुसार करने से इनकार करते हैं, उन्हें रहने और दूसरों की शान्ति भंग करने नहीं दिया जाएगा। हमारी खुबसूरत पृथ्वी अब और ख़राब नहीं होगी।

“आओ, यहोवा के महाकर्म देखो . . . वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है,” भजन ४६:८, ९ में वादा किया गया है। (मीका ४:३, ४ को भी देखें।) विश्‍व शान्ति को लाने में एक महत्त्वपूर्ण बात राष्ट्रीय मतभेदों को मिटा देना है। सहयोग मिलने की गारंटी है, इसलिए कि पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक ही सरकार रहेगी—परमेश्‍वर की सरकार। और उसकी सरकार एक ऐसा राज्य है “जो अनन्तकाल तक न टूटेगा।” (दानिय्येल २:४४) इसके अलावा, इसका राजा पुनरुत्थित, अमर यीशु मसीह है, जिसकी हुक़ूमत न्याय और धर्म के द्वारा की जाएगी।—यशायाह ९:६, ७; ३२:१.

लेकिन क्या यह सब मनुष्य की पैदाइशी अपरिपूर्णता से ख़राब कर दिया जाएगा और जारी दर्द, बीमारी, दुःख और मृत्यु से बिगाड़ दिया जाएगा? नहीं, इसलिए कि ये सारी बातें भी अतीत की बातें हो चुकी होंगी। प्रकाशितवाक्य २१:४ में हमें यक़ीन दिलाया जाता है: “और वह उन की आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” पैदाइशी पाप को यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर माफ़ किया जाएगा, और मनुष्यजाति को फिर से एक पूर्ण अवस्था में लाया जाएगा। (रोमियों ६:२३; इफिसियों १:७) और उनके सृष्टिकर्ता के अलावा और कौन है जो ज़्यादा बेहतर रीति से प्राकृतिक शक्‍तियों को नियंत्रित करके उन्हें मनुष्यजाति को हानि पहुँचाने से रोक सकता है?—भजन १४८:५-८; यशायाह ३०:३०.

ऐसी बातें जिनकी मनुष्य सिर्फ़ आशा ही कर सकता और सपना ही देख सकता है, परमेश्‍वर उन्हें पूरा कर सकते हैं। लेकिन कब? बाइबल की भविष्यद्वाणी से सूचित होता है कि परिवर्तन एक ऐसे समय में आएँगे जब राष्ट्र “क्रोध” करते और मनुष्य ‘पृथ्वी को बिगाड़’ रहे होते। (प्रकाशितवाक्य ११:१८) इस पुरानी दुनिया के आख़री दिन “कठिन समय” से चिह्नित होते, “जिनसे निपटना मुश्‍किल होगा”—जिसके परिणामस्वरूप यही बदतर होनेवाली परिस्थितियाँ होतीं, जो हम इस वक़्त अपने इर्द-गिर्द देखते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३, न्यू.व.) और यीशु ने पूर्वबतलाया कि जो पीढ़ी इन बातों को देखती, यही वह पीढ़ी होती जो परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं की पूर्ति को भी देखती।—मत्ती २४:३-१४, ३२-३४.

बाइबल में लिपिबद्ध इन प्रतिज्ञाओं की जाँच करने के लिए वक़्त निकाल लीजिए। क्योंकि इस बात पर, दोनों, जानकार मनुष्य और परमेश्‍वर सहमत हैं: नयी दुनिया के आने का अब समय है!

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