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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
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पाठकों से प्रश्‍न

क्या यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का पिता, जकरयाह, को बहरा और गूँगा बना दिया गया था, जैसे लूका १:६२ सूचित करता है?

कुछ लोगों ने निष्कर्ष निकाला है कि जकरयाह बहरा भी हो गया। हम बाइबल वृत्तांत में पढ़ते हैं: “वे [बालक] का नाम उसके पिता के नाम पर जकरयाह रखने लगे। और उस की माता ने उत्तर दिया कि नहीं; बरन उसका नाम यूहन्‍ना रखा जाए। और उन्होंने उस से कहा, तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं! तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? और उस ने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, कि उसका नाम यूहन्‍ना है।”—लूका १:५९-६३.

फिर भी, इस लेख में ख़ास तौर से कहीं पर भी यह नहीं कहा गया है कि जकरयाह कुछ समय के लिए सुन नहीं सकता था।

इससे पहले जिब्राईल स्वर्गदूत ने जकरयाह को पुत्र के आगामी जन्म की घोषणा की थी जिसका नाम यूहन्‍ना होगा। वृद्ध जकरयाह को यह अविश्‍वसनीय लगा। स्वर्गदूत ने जवाब दिया: “देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तू ने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, प्रतीति न की।” (लूका १:१३, १८-२०) स्वर्गदूत ने कहा था कि जकरयाह की श्रवण-शक्‍ति नहीं, बल्कि उसकी वाणी पर असर होगा।

लेख आगे कहता है: “जब वह [मन्दिर] के बाहर आया तो [इंतज़ार कर रहे लोगों] से बोल न सका, सो वे जान गए कि उस ने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उन से संकेत करता रहा, और गूंगा रह गया।” (लूका १:२२) यूनानी शब्द जिसका अनुवाद यहाँ “गूंगा” किया गया है, वाणी, श्रवण, या दोनों में मंद होने के विचार को प्रकट करता है। (लूका ७:२२) जकरयाह के बारे में क्या? खैर, ध्यान दें कि जब वह चंगा हुआ तो क्या हुआ। “तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई, और वह बोलने और परमेश्‍वर का धन्यवाद करने लगा।” (लूका १:६४) यह तर्कसंगत रूप से इस विचार की ओर ले जाता है कि केवल जकरयाह की बोलने की क्षमता को क्षति हुई थी।

तो फिर, अन्य लोगों ने जकरयाह से ‘संकेत करके’ क्यों ‘पूछा कि वह [बालक] का नाम क्या रखना चाहता है?’ कुछ अनुवादकों ने इसे “संकेतों की भाषा में” या “इंगित भाषा का उपयोग करके” व्यक्‍त किया है।

जकरयाह, जो स्वर्गदूत की घोषणा के वक़्त से गूंगा हो गया था, व्यक्‍त करने के लिए अकसर इशारों को, एक क़िस्म की इंगित भाषा, इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जाता था। उदाहरण के लिए, वह मन्दिर में रहे लोगों से “संकेत करता रहा।” (लूका १:२१, २२) जब बाद में उसने लिखने की पट्टी माँगी, उसने ज़रूर संकेतों या इशारों का उपयोग किया होगा। (लूका १:६३) इसलिए, यह संभव है कि उसके गूंगेपन की अवधि के दौरान जो लोग उसके चारों ओर थे, वे भी इशारों का उपयोग करने के लिए प्रवृत हुए।

बहरहाल, यहाँ पर लूका १:६२ में वर्णित संकेतों के लिए एक और संभावनीय व्याख्या है। इलीशिबा ने अपने पुत्र के नाम के बारे में अभी-अभी स्वयं व्यक्‍त किया था। इसलिए, उसका विरोध किए बग़ैर, उन्होंने उसके पति के फ़ैसले को लेने का अगला और उचित क़दम लिया होगा। वे इसे सिर्फ़ सिर हिलाने से या हाथों के संकेत से कर सकते थे। यह वास्तविकता कि उन्होंने जकरयाह को पढ़ने के लिए अपना प्रश्‍न नहीं लिखा इसका प्रमाण हो सकता है कि उस ने अपनी पत्नी के शब्दों को सुना था। इसलिए, केवल सिर हिलाने का या उसे एक तुलनात्मक संकेत देने का यह अर्थ हो सकता है, ‘खैर, हम सब ने (जकरयाह, तुम्हें शामिल करके) उसकी सिफ़ारिश को सुना, मगर बालक के नाम के बारे में तुम्हारा अन्तिम निर्णय क्या है?’

और इसके तुरन्त बाद एक और चमत्कार हुआ, जिसने स्थिति को घुमा दिया। “उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई और वह बोलने लगा।” (लूका १:६४) उसकी श्रवणशक्‍ति के बारे मे कोई ज़िक्र की ज़रूरत नहीं थी अगर इस पर असर नहीं हुई थी।

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