धर्म एक वर्जित विषय?
“दो विषय हैं जिनके बारे में मैं कभी चर्चा नहीं करता: धर्म और राजनीति!” जब यहोवा के साक्षी दूसरों से बाइबल के बारे में बात करते हैं तो यह एक आम प्रतिक्रिया है। और यह दृष्टिकोण स्वाभाविक है।
जब लोग राजनीति के बारे में बहस करते हैं, गुस्सा भड़क सकता है, और लड़ाई शुरू हो सकती है। अनेक लोग खोखली प्रतिज्ञाओं के धोखे में नहीं आते हैं और वे समझते हैं कि राजनीतिज्ञ अकसर केवल शक्ति, प्रसिद्धि, और पैसे का पीछा करते हैं। अफ़सोस की बात है कि राजनीतिक मतभेद कभी-कभी हिंसा का कारण बनते हैं।
‘लेकिन,’ आप शायद तर्क करें, ‘क्या यह धर्म के बारे में भी सच नहीं है? क्या धार्मिक आवेग ने अनेक वर्तमान-दिन के संघर्षों को नहीं भड़काया है?’ उत्तरी आयरलैंड में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट काफ़ी समय से आपस में लड़ रहे थे। बाल्कन देशों में ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च के सदस्य, रोमन कैथोलिक, और अन्य लोग क्षेत्र के लिए लड़ते हैं। परिणाम? अत्याचार और जारी दुर्भावनाएँ।
मृत्यु के ख़तरे का सामना करते हुए, अनेक लोग अपने और अपने परिवारों के व्यक्तिगत विश्वासों को छुपाने की कोशिश करते हैं। अफ्रीका में मसीहीजगत के लोगों और अन्य विदेशी तथा प्रांतीय धर्मों के भी अनुयायियों के बीच शताब्दियों की धार्मिक शत्रुता ने माता-पिताओं को प्रेरित किया कि वे अपने बच्चों को दो नाम दें जो उन्हें कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं, एक ऐसा रिवाज़ जो आज भी क़ायम है। एक युवा लड़का एक गिरजे के सदस्य या अन्य धर्म के माननेवाले के तौर पर इनमें से केवल एक नाम का इस्तेमाल करते हुए अपने-आप को प्रस्तुत कर सकता है। जब एक व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों की वजह से अपना जीवन खो सकता है तब यह आश्चर्य की बात नहीं कि वह धर्म की खुले आम चर्चा करने से हिचकिचाता है।
अन्य लोगों के लिए, जब उनके जीवन ख़तरे में नहीं हैं तब भी धर्म एक वर्जित विषय है। वे डरते हैं कि दूसरे धर्म के किसी व्यक्ति के साथ अपने विश्वासों के बारे में चर्चा करना एक अर्थहीन बहस की ओर ले जाएगा। और अन्य लोग विश्वास करते हैं कि सभी धर्म अच्छे हैं। वे कहते हैं कि जब तक एक व्यक्ति अपने विश्वासों से संतुष्ट है तब तक भिन्नताओं के बारे में बात करना एक निरर्थक कार्य है।
यहाँ तक कि धर्म के स्वभाव के गंभीर विद्यार्थी भी आपस में असहमत हैं। द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका अपने लेख “धर्मों का अध्ययन और वर्गीकरण” में स्वीकार करती है: “विरल ही . . . [धर्म] के स्वभाव के बारे में विद्वानों के बीच सर्वसम्मति रही है . . . अतः इसके आरम्भ से ही यह एक विवाद का विषय रहा है।”
एक कोश धर्म की परिभाषा इस प्रकार करता है: “सृष्टिकर्ता और विश्व की चालक मानी गयी एक अलौकिक शक्ति पर मनुष्यों के विश्वास और उसके प्रति उनकी श्रद्धा की अभिव्यक्ति।” यह माँग करेगा कि धर्म जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए। वास्तव में धर्म मानव इतिहास के विकास में एक सार्वत्रिक कारण रहा है। ऑक्सफोर्ड इलस्ट्रेटड एनसाइक्लोपीडिया ऑफ पीपलस् एन्ड कलचर्स नोट करती है कि “कोई ऐसा समाज नहीं रहा है जिसने किसी तरह के धर्म के द्वारा जीवन को सुव्यवस्था और अर्थ प्रदान करने की कोशिश नहीं की।” धर्म जो जीवन में “सुव्यवस्था” और “अर्थ” जैसी मूल बातों को अंतर्ग्रस्त करता है, ज़रूर वाद-विवाद या बहस से ज़्यादा के योग्य होगा। वास्तव में, यह किसी और के साथ चर्चा—अर्थात् पूर्ण विचार करने—के योग्य है। लेकिन किसके साथ, और इससे क्या फ़ायदा हो सकता है?