सिक्के जिन पर परमेश्वर का नाम है
यहाँ दिखाए गए चाँदी के सिक्कों को ध्यान से देखिए। ये जर्मनी के शहनशाह विल्हेल्म V द्वारा १६२७ से १६३७ तक के उसके शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। उस समय, मध्य यूरोप तीस साल के युद्ध, अर्थात् कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों के बीच संघर्ष में उलझा हुआ था। विल्हेल्म V ने प्रोटेस्टेंट आंदोलन का पक्ष लिया। इस संघर्ष के भारी ख़र्च को पूरा करने के लिए उसने अपनी सारी चाँदी ली और उससे सिक्के बनाए।
दिलचस्पी की बात है कि इन में से कई सिक्कों पर सूर्य से घिरा हुआ परमेश्वर का नाम, अर्थात् यहोवा का इब्रानी चतुरवर्णी शब्द चित्रित किया गया है। एक खजूर का पेड़ भी है जो ताक़त को चित्रित करता है। निहितार्थ यह है कि वह पेड़ हवा के कारण मुड़ा हुआ होने पर भी, परमेश्वर की सुरक्षा के अधीन टूटता नहीं। सिक्के पर लातिनी में अंकित शब्दों में यहोवा का नाम है और वह उसकी सुरक्षात्मक परवाह पर भरोसा व्यक्त करता है।
परमेश्वर से सुरक्षा का अनुरोध करने के बजाय, परमेश्वर के नाम का ऐसा प्रयोग वास्तव में व्यर्थ था, क्योंकि यहोवा मनुष्यजाति के हिंसक लड़ाइयों में पक्ष नहीं लेता। निश्चय ही तीस साल के युद्ध को परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिली। “संतुलित अनुमानों के अनुसार” फंक एंड़ वॆग्नल्स न्यू एनसाइक्लोपीडिया कहती है, “युद्ध के दौरान जर्मनी के कम-से-कम आधे लोग मारे गए। जर्मनी के अनगिनत नगर, क़स्बे, गाँव, और फ़ार्म पूर्णतः नाश किए गए थे। जर्मनी की औद्योगिक, कृषि, और व्यावसायिक सहूलियतों के क़रीब दो-तिहाई हिस्से का विनाश हो गया था।”
इन सिक्कों पर यहोवा के नाम का प्रयोग इस्राएल को दी गई आज्ञा की याद दिलाता है: “तू अपने परमेश्वर [यहोवा] का नाम व्यर्थ न लेना।” (निर्गमन २०:७) फिर भी, ये सिक्के गवाही देते हैं कि जर्मनी के लोग काफ़ी समय से ईश्वरीय नाम, यहोवा से परिचित हैं। इस नाम के परमेश्वर को आप कितनी अच्छी तरह जानते हैं?