जब “कोई बयार सही बयार नहीं होती”
“जब एक व्यक्ति नहीं जानता है कि वह किस बन्दरगाह की ओर बढ़ रहा है, तब कोई बयार सही बयार नहीं होती।” ये शब्द, जिनका श्रेय पहली-शताब्दी के रोमी तत्वज्ञानी लूक्युस आनाइयुस सेनेका को दिया जाता है, एक बहुत पहले से स्वीकृत सत्य की पुष्टि करते हैं: जीवन में निर्देशन होने के लिए, लक्ष्य अत्यावश्यक हैं।
लेकिन, अकसर जीवन निरुद्देश्य होता है। अनेक लोग रोज़ाना ज़िन्दगी की चट्टानों और भँवरों को मात्र टालने से संतुष्ट हैं। किसी निश्चित स्थान के बग़ैर, वे ऐसी लहरों के समान बन जाते हैं जो “एक झोंके से आगे और दूसरे झोंके से पीछे जाती हैं।” (याकूब १:६, “फिलिप्पस्”) ऐसे लोगों के लिए “कोई बयार सही बयार नहीं है।”
बाइबल ऐसे लोगों के उदाहरण प्रदान करती है जो लक्ष्य द्वारा निर्देशित थे, और इस प्रकार वे आज मसीहियों के लिए आदर्श नमूनों के तौर पर कार्य करते हैं। मूसा “की आंखें फल पाने की ओर लगी थीं।” (इब्रानियों ११:२६) पौलुस ने लिखा: “[मैं] निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं।” उसने संगी विश्वासियों को ‘यही विचार रखने’ के लिए प्रोत्साहित किया।—फिलिप्पियों ३:१४, १५.
बाइबल की प्रतिज्ञाओं पर अपनी आँखें एकाग्रता से लगाए रखने के द्वारा, ऐसा हो कि हम ऐसे लक्ष्य-निर्देशित लोगों के विश्वास का अनुकरण करें।—इब्रानियों १३:७ से तुलना कीजिए।