‘जैसा लोहा लोहे को चमकाता है’
सामान्य युग तीसरी सदी के अन्त में, ऎन्थोनी नामक एक उत्साही युवा व्यक्ति, जिनका वर्णन “मिस्री ईसाई” के रूप में किया जाता है, ने संसार को छोड़ दिया और रेगिस्तान में २० साल अकेले गुज़ारा। क्यों? उन्होंने सोचा कि उनके लिए परमेश्वर की सेवा करने का यही सर्वोत्तम तरीक़ा है। वो मसीहीजगत के पहले प्रभावशाली एकान्तवासी, या वैरागी थे।
आज, मसीहीजगत में कम एकान्तवासी हैं। लेकिन अधिकाधिक व्यक्ति दूसरे तरीक़े से एकान्तता ढूंढते हैं। वे धर्म के बारे में दूसरों के साथ बात करने से इनकार करते हैं, यह महसूस करते हैं कि ऐसी बातचीत मतभेद और लड़ाइयों की ओर ले जाती है। उनकी उपासना में मुख्यतः अपने पड़ोसी को कोई हानि नहीं पहुँचाना शामिल है।
यह सच है कि अपने पड़ोसी को कोई हानि नहीं पहुँचाना सच्चे धर्म का एक भाग है, लेकिन इससे ज़्यादा की आवश्यकता है। एक पुरानी कहावत यों कहती है: “जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।” (नीतिवचन २७:१७) सच्चाई यह है कि बाइबल मसीहियों को एक दूसरे के साथ इकट्ठे होने का प्रोत्साहन देती है, अपने आपको संसार से या अन्य मसीहियों से पूरी तरह अलग करने का नहीं। (यूहन्ना १७:१४, १५) वह कहती है: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें।” (इब्रानियों १०:२४, २५) यहोवा के साक्षी उस सलाह का पालन करते हैं। ‘एक दूसरे के मुख को चमकदार’ करने के लिए वे हफ़्ते में कई बार इकट्ठा होते हैं जिससे संगी विश्वासियों का विश्वास मज़बूत होता है। वे पाते हैं कि खुलकर और निष्कपटता से बाइबल की चर्चा करना लड़ाइयों की ओर नहीं ले जाता। इसके बजाय, यह सुमेल और शान्ति की ओर ले जाता है। यह सच्ची उपासना का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।