‘क्या मैं परमेश्वर के लिए महत्त्वपूर्ण हूँ?’
“क्या मैं महत्त्वपूर्ण हूँ? क्या परमेश्वर चिन्ता करता है?” आज की मसीहियत (अंग्रेज़ी) में प्रकाशित एक लेख का शीर्षक इस प्रकार था। “लेखक के तौर पर मेरे पेशे का अधिकांश भाग दुःख की समस्या पर केन्द्रित रहा है,” इस लेख का लेखक फिलिप यानसी कहता है। “मैं बार-बार उन्हीं सवालों पर आ जाता हूँ, मानो एक ऐसे पुराने घाव को छूता हूँ जो कभी भरता ही नहीं। मैं अपनी किताबों के पाठकों की सुनता हूँ, और उनकी व्यथा-भरी कहानियाँ मेरी आशंकाओं को मानव रूप देती हैं।”
शायद आपने भी अपने जीवन में परमेश्वर की दिलचस्पी के बारे में सोचा है। आप शायद यूहन्ना ३:१६ से परिचित हों, जो कहता है कि “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।” या आपने शायद मत्ती २०:२८ पढ़ा हो जो कहता है कि यीशु इसलिए आया कि “बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” फिर भी आप शायद पूछें, ‘क्या परमेश्वर मुझे देखता है? क्या एक व्यक्ति के तौर पर उसको मेरी चिन्ता है?’ जैसे हम देखेंगे, यह विश्वास करने का एक अच्छा कारण है कि वह चिन्ता करता है।