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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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परमेश्‍वर, सरकार, और आप

“आयरलैंड में तलाक़ पर जननिर्देश में चर्च और सरकार का एक दूसरे से सामना”

द न्यू यॉर्क टाइमस्‌ में यह सुर्खी सचित्रित करती है कि आज लोगों को कैसे एक चुनाव का सामना करना पड़ सकता है, सरकार क्या चाहती है और उनका गिरजा क्या सिखाता है उसके बीच चुनाव।

लेख ने बताया: “तलाक़ पर संवैधानिक प्रतिबन्ध हटाया जाए या नहीं, इस पर जननिर्देश के लिए एक महीना भी बाक़ी नहीं है कि बहुसंख्यक रोमन कैथोलिकों का देश आयरलैंड अपनी सरकार के नेताओं और अपने गिरजे के अगुवों के बीच एक विरल टक्कर देख रहा है।” सरकार ने प्रस्ताव रखा कि तलाक़ पर प्रतिबन्ध हटा दिया जाए, जबकि कैथोलिक चर्च तलाक़ और पुनःविवाह का कड़ा विरोध करता है। आइरिश कैथोलिकों को चर्च और सरकार के बीच चुनाव करना था। नतीजा यह था कि सरकार मामूली-सा बहुमत प्राप्त कर जीत गयी।

अधिक नाटकीय रूप से, कई सालों से उत्तरी आयरलैंड के लोगों ने राष्ट्रीय सर्वसत्ता के मुद्दे पर कटु संघर्ष का सामना किया है। अनेक लोग मारे गए हैं। रोमन कैथोलिक और प्रोटॆस्टॆंट लोगों के इस विषय पर परस्पर विरोधी मत रहे हैं कि किस सरकार के अधीन हों: उत्तरी आयरलैंड में जारी ब्रिटिश शासन या पूरे आयरलैंड के लिए एक केंद्रीयकृत सरकार।

उसी प्रकार, जो युगोस्लाविया हुआ करता था वहाँ सत्ताधारियों ने माँग की है कि भिन्‍न धर्मों के सदस्य, जिसमें कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स सम्मिलित थे, क्षेत्र के लिए लड़ाई में लड़ें। साधारण नागरिकों के लिए, उनका प्रथम कर्तव्य क्या था? क्या उन्हें उनके पीछे जाना था जो सरकार का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते थे, या क्या उन्हें परमेश्‍वर की आज्ञा माननी थी, जो कहता है: “हत्या न करना . . . अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख”?—रोमियों १३:९.

आप शायद सोचें कि इस क़िस्म की स्थिति का प्रभाव शायद आप पर कभी न पड़े। लेकिन पड़ सकता है। असल में, यह अभी-भी आपकी चिन्ता हो सकता है। अपनी पुस्तक नए नियम में सरकार (अंग्रेज़ी) में, धर्म-विज्ञानी ऑस्कर कलमैन ऐसे “जीवन-मृत्यु के फ़ैसलों” के बारे में बात करता है जो “आधुनिक मसीहियों को कठिन परिस्थितियों में करने पड़ते हैं या करने की ज़रूरत पड़ सकती है जब वे सर्वसत्तावादी सरकारों द्वारा धमकाए जाते हैं।” लेकिन, वह “हर मसीही की—उन मसीहियों की भी जो तथाकथित ‘सामान्य,’ ‘साधारण’ परिस्थितियों में रहते हैं—उतनी ही वास्तविक और महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी” के बारे में भी बात करता है, कि उसे “एक गंभीर समस्या का सामना करना और उत्तर देना है जो उसके सामने मात्र इसलिए आती है क्योंकि वह एक मसीही है।”

सो क्या आज मसीहियों को धर्म और सरकार के बीच सम्बन्ध में दिलचस्पी होनी चाहिए? निश्‍चित ही होनी चाहिए। आरंभिक समय से, मसीहियों ने लौकिक अधिकारियों के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने की कोशिश की है। रोमी सरकार ने उनके अगुवे, यीशु मसीह का न्याय किया, उसे दोषी ठहराया, और मार डाला। उसके शिष्यों को अपनी मसीही बाध्यताओं और रोमी साम्राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों के बीच संतुलन करना पड़ा। इसलिए, अधिकारियों के साथ उनके सम्बन्ध पर पुनर्विचार करना आज मसीहियों के लिए मार्गदर्शन देगा।

[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]

Tom Haley/Sipa Press

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