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ईमानदारी—संयोगवश या चुनाव से?

“हालाँकि मैं स्वभाव से ईमानदार नहीं हूँ, कभी-कभार संयोगवश ऐसा हो जाता हूँ।” विलियम शेक्सपियर के द विन्टर्स टॆल में बेईमान ऑटॊलीकस यूँ कहता है। यह मानव की एक मूल कमज़ोरी को दर्शाता है— ग़लत कार्यों की ओर हमारा झुकाव, जो ‘धोखेबाज़ मन’ का परिणाम है। (यिर्मयाह १७:९; भजन ५१:५; रोमियों ५:१२) किन्तु क्या इसका यह अर्थ है कि इस मामले में हमारे पास कोई चुनाव नहीं है? क्या सदाचरण मात्र संयोगवश होता है? क़तई नहीं!

इस्राएलियों के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले, जब वे मोआब के मैदानों में डेरा डाले हुए थे तब मूसा ने उनसे बात की। उसने उनके समक्ष दो स्पष्ट चुनाव रखे। वे परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानकर आशीष प्राप्त कर सकते थे या उन्हें ठुकरा कर पाप के कड़वे फल की कटनी काटते। (व्यवस्थाविवरण ३०:१५-२०) चुनाव उनका था।

स्वतंत्र नैतिक प्राणी होने के नाते, हम भी चुनाव कर सकते हैं। कोई भी—यहाँ तक की परमेश्‍वर भी—हमें अच्छा या बुरा करने के लिए बाध्य नहीं करता। बहरहाल, कोई शायद उचित ही पूछे, ‘यदि हमारे हृदय बुराई की ओर प्रवृत्त हैं, तब जो अच्छा है उसे हम कैसे कर सकते हैं?’ जिस तरह, एक दंत चिकित्सक क्षय या सड़न का पता लगाने के लिए सावधानी से दाँतों की जाँच करता है, इससे पहले की वह बहुत ज़्यादा फैल जाए। उसी तरह, कमज़ोरियों एवं नैतिक सड़न की खोज के लिए हमारे लाक्षणिक हृदय की जाँच करना आवश्‍यक है। भला क्यों? क्योंकि “हृदय ही से बुरे बुरे विचार, हत्याएं, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरियां, झूठी साक्षी और निन्दा निकलती हैं,” यीशु ने कहा।—मत्ती १५:१८-२०, NHT.

दाँत की सुरक्षा के लिए, दंत चिकित्सक को चाहे कितनी भी सड़न मिले उसे पूरी तरह जड़ से निकाल देना चाहिए। उसी तरह, “बुरे बुरे विचार” और ग़लत कामनाओं को हृदय से निकाल फेंकने के लिए निर्णायक क़दम उठाने की ज़रूरत है। परमेश्‍वर के वचन, बाइबल को पढ़ने और उस पर चिंतन करने से हम न केवल अपने सृष्टिकर्ता के तरीक़ों को जानेंगे, वरन्‌ जो सही है वह भी करना सीखेंगे।—यशायाह ४८:१७.

इस्राएल के राजा दाऊद ने सही काम करने के लिए संघर्ष में अतिरिक्‍त ज़रूरी सहायता स्वीकार की। उसने प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्‍न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्‍न कर।” (भजन ५१:१०) जी हाँ, यहोवा परमेश्‍वर पर प्रार्थनापूर्वक निर्भर होते हुए, हम भी बुरे काम करने की अपनी प्रवृत्ति पर क़ाबू पा सकते हैं और अच्छा करने के लिए ‘नई आत्मा’ विकसित कर सकते हैं। इस प्रकार, हम ईमानदारी को संयोग पर नहीं छोड़ेंगे। यह चुनाव का मसला होगा।

[पेज 21 पर तसवीर]

जैसा दाऊद के मामले में था, यहोवा से प्रार्थना करने से अच्छा काम करने के लिए हमें मदद मिल सकती है

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