पुस्तकें ही पुस्तकें!
“बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता,” प्राचीन युग के बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा। (सभोपदेशक १२:१२) १९९५ के दौरान ब्रिटेन की जनसंख्या के हर ५८० लोगों के लिए औसतन एक पुस्तक प्रकाशित की गई थी जिससे वह देश नये शीर्षकोंवाली पुस्तक प्रकाशित करनेवाला प्रमुख देश बना। ब्रिटेन की ९५,०१५ की तुलना में चीन, जो सर्वाधिक जनसंख्यावाला देश है, ९२,९७२ संस्करणों के कारण दूसरे स्थान पर था। उसके बाद जर्मनी (६७,२०६ शीर्षकों के साथ), और फिर अमरीका (४९,२७६), फिर फ्रांस (४१,२३४) आया। लंडन का द डेलि टॆलिग्राफ़ समाचार पत्र नोट करता है कि “संसार-भर में ब्रिटेन की प्रामुख्यता का मुख्य कारण मात्र अंग्रेज़ी भाषा है”।
रिपोर्टें सूचित करती हैं कि कई वर्षों से पुस्तक-विक्रय बाज़ार गिर रहा है, और अब ब्रिटेन में केवल ८० प्रतिशत वयस्क ही साल भर में एक या उससे ज़्यादा पुस्तक ख़रीदते हैं। पर क्या ख़रीदी हुई सभी पुस्तकें लोग पढ़ते हैं?
एक पुस्तक जो लगातार बड़े पैमाने में वितरित की जाती और पढ़ी जाती है, वह है बाइबल, जो अब खंडो में या फिर संपूर्ण भागों में २,१२० से भी अधिक भाषाओं में उपलब्ध है। यदि आपके पास अभी भी अपनी प्रति नहीं है, तो एक प्रति पाने के लिए अपने निकटतम वॉच टावर सोसाइटी के दफ़्तर से संपर्क कीजिए। यदि आपके पास बाइबल है, तो उसे निकालिए और इस पत्रिका में प्रकाशित लेखों में दिए शास्त्रीय उल्लेखों की जाँच कीजिए। ऐसा करने से, आप बाइबल के जीवनदायी ज्ञान का पता लगाएँगे।