एक चुनौतीपूर्ण जवाब
ब्रिटेन के रोमन कैथोलिक अख़बार, द कैथोलिक हेरल्ड ने हाल ही में वेल्ज़ के एक पाठक का निम्नलिखित पत्र प्रकाशित किया: “एक रात, दो यहोवा के साक्षी मेरे दरवाज़े पर आये। मैं यह कह सका कि जिस नये नियम का उन्होंने हवाला दिया, उसकी विश्वसनीयता की गारंटी कैथोलिक चर्च ने ही दी है। ताज्जुब की बात है, एक मुझसे सहमत हुआ और उसने कहा, ‘जी हाँ, तुमने गारंटी दी है पर तुम उसे मानते नहीं। यीशु ने कहा, “जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो,” पर तुम तो एक दूसरे की जान लेते हो। पिछले युद्ध में, कैथोलिकों ने कैथोलिकों की जान ली, पर किसी भी यहोवा के साक्षी ने [सह] साक्षी की जान नहीं ली।’ मेरी तो बोलती बंद हो गयी! हम कैसे ‘ग़ैर-कैथोलिक भाइयों’ के साथ एकता की प्रार्थना कर सकते हैं जबकि ख़ुद हममें ही सही एकता नहीं है? क्या सबसे पहले हमें यह कलंक दूर नहीं करना चाहिए?”—यूहन्ना १५:१२.
इस २०वीं शताब्दी के दोनों विश्वयुद्ध मसीहीजगत से ही शुरू हुए और इन्होंने तक़रीबन पाँच से छः करोड़ लोगों की जानें ले लीं। बहरहाल, यह बिलकुल सच है कि उन युद्धों में यहोवा के साक्षियों ने कोई हिस्सा नहीं लिया, न ही वे वर्तमान में चल रहे किसी झगड़े-झंझटों में शामिल हैं। यह कैसे संभव है? विश्व-भर में ५० लाख से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों के बीच जो मसीही प्रेम और एकता का शक्तिशाली बंधन है, उसके बारे में अधिक जानकारी हासिल करना आपके लिए फ़ायदेमंद होगा।—यशायाह २:४ से तुलना कीजिए।
[पेज 32 पर चित्र का श्रेय]
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