राज्य उद्घोषक रिपोर्ट करते हैं
धीरज धरने से मलावी में परमेश्वर की आशीषें मिलीं
यूसुफ, यहोवा का एक वफ़ादार सेवक था। (इब्रानियों ११:२२) वह ऐसा पुरुष भी था जिसके पास असाधारण धीरज था। हालाँकि उसके अपने भाइयों ने उससे विश्वासघात किया, दो बार ग़ुलामी में बेचा गया और बाद में झूठा इलज़ाम लगाकर उसे जेल में डाल दिया गया, यूसुफ टूटा नहीं। इसके बजाय, उसने धैर्यपूर्वक सालों तक क्लेश सहा और नम्रतापूर्वक यहोवा की आशीषों की बाट जोहता रहा।—उत्पत्ति ३७:२३-२८, ३६; ३९:११-२०.
उसी तरह आज, मलावी में यहोवा के साक्षियों ने धैर्यपूर्वक परमेश्वर की आशीषों की बाट जोही है। छब्बीस सालों तक इन मसीही साक्षियों ने सरकारी पाबंदी, कड़े विरोध और अनेक तरह के दुर्व्यवहार सहे। लेकिन उनके धीरज का फल मिला!
जब १९६७ के आख़िर में सताहट शुरू हुई, उस वक़्त वहाँ १८,००० राज्य प्रकाशक थे। उस ख़ुशी की कल्पना कीजिए जब साक्षियों ने यह सुना कि १९९७ का सेवा वर्ष ३८,३९३ प्रकाशकों के शिखर के साथ शुरू हुआ, जो प्रतिबंध के शुरू होने के समय के दुगने से भी ज़्यादा था! इसके अलावा, मलावी में हुए १३ “ईश्वरीय शांति के संदेशवाहक” ज़िला अधिवेशनों में १,१७,००० से भी ज़्यादा लोग हाज़िर थे। सचमुच, यहोवा ने उनके विश्वास और धीरज पर आशीष दी है।
इस आशीष का एक उदाहरण, माचाका नामक युवक का अनुभव है। जब माचाका ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने की हामी भरी, तब उसके माँ-बाप बहुत खफ़ा हुए। उन्होंने कहा: “अगर तुम साक्षी बनना चाहते हो तो घर से निकल जाओ।” लेकिन इस धमकी से अध्ययन करने की उसकी लगन कम नहीं हुई। नतीजा यह हुआ कि माचाका के माँ-बाप ने उसके सारे कपड़े ज़ब्त कर लिए। लेकिन भाइयों ने उसे और कपड़े ख़रीदवा दिए। जब माचाका के माँ-बाप को इसका पता चला तो उन्होंने उससे कहा: “अगर साक्षी तुम्हारी देखभाल करेंगे तो तुम घर से निकल जाओ और उन्हीं के साथ रहो।” इस बात पर अच्छी तरह विचार करने के बाद, माचाका ने घर छोड़ दिया और वहाँ की स्थानीय कलीसिया के एक साक्षी परिवार ने उसे अपने घर पनाह दे दी।
माचाका के माँ-बाप इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने वहाँ से घर छोड़कर कहीं और चले जाने का फ़ैसला कर लिया ताकि उन्हें किसी-भी साक्षी की सूरत न दिखाई पड़े। ज़ाहिर है कि मचाका को इसका बहुत अफ़सोस हुआ, लेकिन उसे बहुत तसल्ली मिली जब भाइयों ने उसके साथ भजन २७:१० में लिखे वचन पर चर्चा की जो कहता है: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।”
कुछ समय बाद, माचाका के माँ-बाप का दिल नम्र पड़ गया और माचाका ने फिर से अपने माँ-बाप के साथ रहने का फ़ैसला किया। यहोवा की सेवा करने के उनके बेटे के मज़बूत इरादे ने उनके दिल पर गहरा असर किया। यह इस बात से ज़ाहिर हुआ कि अब वे भी यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करना चाहते थे! वे भी “ईश्वरीय शांति के संदेशवाहक” ज़िला अधिवेशन के तीनों दिन हाज़िर हुए, जिसके बाद वे यह कहने पर मजबूर हुए: “वाक़ई, यही परमेश्वर का संगठन है।”
जी हाँ, विरोध से परीक्षा हो सकती है, लेकिन परमेश्वर के निष्ठावान संदेशवाहक हिम्मत नहीं हारते। वे निडरता से आगे बढ़ते रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ‘क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, उत्पन्न होता है।’ (रोमियों ५:३, ४) मलावी में यहोवा के साक्षी इसका सही रीति से सबूत दे सकते हैं कि धीरज धरने से परमेश्वर की आशीष मिलती है।