डॉक्टर, न्यायाधीश और यहोवा के साक्षी
मार्च १९९५ को ब्राज़ील में यहोवा के साक्षियों ने दो सेमिनारों का आयोजन किया। इसका उद्देश्य क्या था? चिकित्सा और कानूनी कर्मचारी-वर्ग से सहयोग पाना, जब अस्पताल का मरीज़ एक यहोवा का साक्षी हो जो रक्ताधान स्वीकार नहीं कर सकता।—प्रेरितों १५:२९.
खेद है कि कुछ मामलों में डॉक्टरों ने साक्षी मरीज़ों की इच्छाओं को नज़रअंदाज़ किया और जबरन रक्ताधान कराने के लिए कोर्ट से ऑर्डर पाने की कोशिश की। ऐसी स्थितियों में साक्षियों ने अपनी सुरक्षा के लिए जो भी कानूनी ज़रिए मौजूद थे, उनका सहारा लिया। फिर भी, वे विरोध की अपेक्षा सहयोग अधिक पसंद करते हैं। इसलिए इन सेमिनारों ने ज़ोर दिया कि समजात रक्ताधान चिकित्सा के कई विकल्प हैं और कि यहोवा के साक्षी उन्हें बड़ी खुशी से स्वीकार करते हैं।a
साओ पाउलो की क्षेत्रीय चिकित्सा परिषद् की एक बैठक ने पहले से ही साक्षियों की स्थिति का समर्थन किया था। जनवरी १९९५ में उसने फैसला किया कि यदि डॉक्टर के बताए गए उपचार से कुछ आपत्ति है, तो मरीज़ को उसे ठुकराने का और दूसरे डॉक्टर को चुनने का पूरा-पूरा हक है।
सराहनीय है कि अब ब्राज़ील के चिकित्सीय समाज में ऐसे सैकड़ों डॉक्टर हैं जो अपने उन मरीज़ों का बिना रक्त उपचार करने के इच्छुक हैं जो उनसे ऐसा करने के लिए निवेदन करते हैं। मार्च १९९५ के सेमिनारों के बाद से, ब्राज़ील में डॉक्टरों, न्यायाधीशों और यहोवा के साक्षियों के बीच में सहयोग बड़े ही अनोखे ढंग से बढ़ गया है। १९९७ में ब्राज़ील की चिकित्सीय पत्रिका अमबीटु ऑस्पीटालार ने एक लेख छापा, जिसने रक्त संबंधी मामलों में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए यहोवा के साक्षियों के अधिकारों पर ज़ोर दिया। रियो डॆ जनॆरो और साओ पाउलो राज्यों की क्षेत्रीय चिकित्सा परिषद् द्वारा जैसा कि कहा गया, अब यह व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया गया है कि “अपने मरीज़ की जान बचाने का डॉक्टर का कर्त्तव्य, मरीज़ के अपने चुनाव के हक का समर्थन करने के उसके कर्त्तव्य से बढ़कर नहीं होना चाहिए।”
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