“बालकपन से तेरा जाना हुआ है”
हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, शिशुओं से बात करना उनके मस्तिष्क के विकास को बहुत ही बड़े हद तक प्रभावित करता है, और उनकी सोचने, तर्क करने, और समस्याओं को सुलझाने की काबिलीयत को बढ़ाता है। यह खासकर बच्चे के जीवन के पहले साल में सच होता है। इंटरनैशनल हैराल्ड ट्रिब्यून रिपोर्ट करता है कि कुछ अनुसंधान करनेवाले अब मानते हैं कि “एक शिशु एक दिन में जितने लफ्ज़ सुनता है, वही उसकी भावी अक्लमंदी, स्कूल में कामयाबी और सामाजिक समर्थता को तय करनेवाला सबसे ज़्यादा अहम तत्व है।”
लेकिन, ये बोले गए शब्द इंसान के मुँह से आने चाहिए। ऐसा लगता है कि कोई रेडियो या टीवी उसकी जगह नहीं ले सकता।
अमरीका, सीएटल के यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के एक तंत्रिका-वैज्ञानिक ने कहा: “अब हम जान गए हैं कि तंत्रिका के कनेक्शंस जीवन में बहुत ही जल्दी बन जाते हैं और एक शिशु का मस्तिष्क बस अनुभवों का इंतज़ार करता रहता है, यह तय करने के लिए कि ये कनेक्शंस कैसे बनते हैं। इस बात का एहसास हमें बस हाल ही में हुआ है कि यह प्रक्रिया कितनी जल्दी शुरू हो जाती है। मिसाल के तौर पर, शिशुओं ने अपनी मातृभाषा की आवाज़ों को छः महीने की उम्र में ही सीख लिया है।”
हाल के अनुसंधान इस व्यापक मत को चुनौती देते हैं कि अगर बच्चों को बस ढेर सारा प्यार दिया जाए तो उनका बौद्धिक विकास होगा। यह बच्चे के विकास में माता-पिता की अहमियत पर भी ज़ोर देता है।
यह तीमुथियुस को लिखे प्रेरित पौलुस के ईश्वर-प्रेरित खत के इन शब्दों की भी याद दिलाता है: “बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे . . . उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) यह मुमकिन है कि शिशु तीमुथियुस की विश्वासी माँ और नानी ने उसे पवित्र शास्त्र सुनाए थे, और इस बात ने परमेश्वर के एक शानदार सेवक बनने में एक अहम भूमिका निभायी।—२ तीमुथियुस १:५; ३:१५.