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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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क्या आपको याद है?

हाल के नए प्रहरीदुर्ग अंकों को पढ़कर क्या आपने उन्हें फायदेमंद पाया है? चलिए देख लीजिए अगर आप आगे दिए गए सवालों के जवाब दे सकें:

◻ पौलुस के ये शब्द “हम मसीह के राजदूत हैं” अभिषिक्‍त मसीहियों पर क्यों ठीक बैठते हैं?

(२ कुरिन्थियों ५:२०) पुराने ज़माने में जब दो देशों के बीच ठन जाती थी, तब राजदूतों को भेजा जाता था ताकि यह पता लगाएँ कि क्या किसी तरह मेल-मिलाप करके लड़ाई टाली जा सकती है। (लूका १४:३१, ३२) क्योंकि पापी मानवजाति परमेश्‍वर से अलग हो गई है, इसलिए उसने अपने अभिषिक्‍त राजदूतों को भेजा है ताकि वे लोगों को बताएँ कि उसके साथ मेल-मिलाप कैसे किया जा सकता है। वे उनसे यह मिन्‍नत भी करते हैं कि परमेश्‍वर से सुलह कर लें।—१२/१५, पेज १८.

◻ वह चार बातें कौन-सी हैं जिनसे इब्राहीम का विश्‍वास मज़बूत हुआ?

पहली बात, जब कभी यहोवा ने इब्राहीम से बात की तब उसने ध्यान लगाकर सुना, और इस तरह उस पर अपना विश्‍वास दिखाया (इब्रानियों ११:८); दूसरी बात, उसके विश्‍वास का उसकी आशा के साथ गहरा संबंध था (रोमियों ४:१८); तीसरी बात, इब्राहीम ने परमेश्‍वर के साथ अकसर बातें कीं; और चौथी बात, जब इब्राहीम ने यहोवा की हिदायतों को माना तब उसने उसकी मदद की। आज ये सब बातें हमारा विश्‍वास भी मज़बूत कर सकती हैं।—१/१, पेज १७, १८.

◻ “हमें परीक्षा में न ला” इन शब्दों का क्या अर्थ है?

(मत्ती ६:१३) हम परमेश्‍वर से मदद माँग रहे हैं कि जब हम उसकी आज्ञा तोड़ने की किसी परीक्षा में पड़ें तो वह हमें गिरने ना दे। यहोवा हमें राह दिखा सकता है ताकि हम परीक्षा में हार न जाएँ और “उस दुष्ट” शैतान के वश में न आ जाएँ। (१ कुरिन्थियों १०:१३)—१/१५, पेज १४.

◻ परमेश्‍वर से, अपने पापों की क्षमा पाने के लिए एक व्यक्‍ति को क्या करना ज़रूरी है?

परमेश्‍वर के सामने पाप को मान लेने के अलावा हम पछतावा भी करें और “मन फिराव के योग्य फल” लाएँ। (लूका ३:८) अगर हममें पश्‍चाताप की भावना है और गलती को सुधारने की इच्छा है तो हम मसीही प्राचीनों की आध्यात्मिक मदद भी लेंगे। (याकूब ५:१३-१५)—१/१५, पेज १९.

◻ हमें नम्र बनने के लिए क्यों मेहनत करनी चाहिए?

नम्र आदमी धीरजवंत और संयमी होता है, और वह खुद को हद से ज़्यादा अहमियत नहीं देता। नम्रता की वज़ह से ऐसे सच्चे दोस्त बनते हैं जो वाकई आपसे प्यार करते हैं। सबसे बड़ी बात, नम्र इंसान को यहोवा आशिष देता है। (नीतिवचन २२:४)—२/१, पेज ७.

◻ यीशु की मौत और आदम की मौत के बीच का महत्त्वपूर्ण फर्क क्या है?

आदम ने जानबूझकर अपने सृजनहार के खिलाफ विद्रोह किया था इसलिए वह मौत के लायक था। (उत्पत्ति २:१६, १७) मगर, यीशु ने ‘पाप नहीं किया था,’ और इसलिए उसकी मौत जायज़ नहीं थी। (१ पतरस २:२२) सो, हालाँकि यीशु मरा, फिर भी उसके पास सिद्ध मानव के रूप में जीने का हक था, एक ऐसी अनमोल चीज़ जो पापी आदम के पास मरते वक्‍त नहीं थी। यीशु अपने इस हक को कुरबान करके मानवजाति को छुड़ा सकता था।—२/१५, पेज १५, १६.

◻ यहेजकेल के भविष्य-सूचक दर्शन का नगर किसे चित्रित करता है?

क्योंकि यह नगर “साधारण” भाग के बीच में बसा है इसलिए इसका संबंध पृथ्वी से होना चाहिए। इसलिए, पता चलता है कि दर्शन का नगर पृथ्वी के उस शासन-प्रबंध को चित्रित करता है जिससे पृथ्वी पर बसे धर्मी इंसानों के समाज को फायदा पहुँचेगा।—३/१, पेज १८.

◻ सा.यु. ३३ में फसह मनाते समय यीशु ने अपने चेलों के पैर क्यों धोए?

यीशु यहाँ पाँव धोने की कोई नई परंपरा शुरू नहीं कर रहा था। वह यह चाहता था कि उसके प्रेरित अपने सोच-विचार बदलें—यही कि वे नम्र बनें और अपने भाइयों के लिए छोटे-से-छोटा काम भी करने को तैयार रहें।—३/१, पेज ३०.

◻ दूसरों को सिखाते वक्‍त कौन-सी बात पैदाइशी काबिलीयतों से ज़्यादा मायने रखती है?

यह कि हममें कौन-कौन से गुण हैं और क्या हम परमेश्‍वर के काम लगातार करते रहते हैं, ताकि हमारे बाइबल विद्यार्थी हमारी नकल करके सीख सकें। (लूका ६:४०; २ पतरस ३:११)—३/१५, पेज ११, १२.

◻ जन-भाषण देनेवाले अपनी बाइबल की पढ़ाई कैसे सुधार सकते हैं?

बार-बार पढ़कर। जी हाँ, ऊँची आवाज़ में बार-बार पढ़ते हुए, जब तक कि वे अच्छी तरह न पढ़ने लगें। अगर आपकी भाषा में बाइबल के ऑडियो कैसॆट हैं तो उसे सुनना अच्छा होगा। इससे आप यह जान पाएँगे कि बाइबल पढ़नेवाला सही अर्थ देने के लिए किन शब्दों पर ज़ोर देता है और अपनी आवाज़ में कहाँ-कहाँ फेर-बदल करता है और इस पर भी ध्यान दीजिए कि नामों और मुश्‍किल शब्दों का उच्चारण किस तरह किया जाता है।—३/१५, पेज १९.

◻ किस मायने में एक इंसान के मरने पर ‘आत्मा [इब्रानी रूआख] परमेश्‍वर के पास लौट जाती है’?

(सभोपदेशक १२:७) यहाँ पर ‘आत्मा’ अनुवादित इब्रानी शब्द रूआख का मतलब जीवन-शक्‍ति है, और इसके ‘परमेश्‍वर के पास लौटने’ का मतलब है कि मरे हुए उस इंसान के लिए भविष्य में जीवन पाने का अधिकार पूरी तरह से परमेश्‍वर के हाथों में है। सिर्फ परमेश्‍वर ही किसी इंसान को रूआख, या जीवन-शक्‍ति दे सकता है ताकि वह इंसान फिर से जीवन पाए। (भजन १०४:३०)—४/१, पेज १७.

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