राज्य उद्घोषक रिपोर्ट करते हैं
“परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।”
ऊपर लिखे शब्दों को हम मत्ती १९:२६ (NHT) में पढ़ते हैं, और ये वेनेज़ूएला में रहनेवाली एक जवान स्त्री की ज़िंदगी में सच साबित हुए हैं। जब से वह यहोवा पर अपना पूरा विश्वास रखने लगी तब से वह अपनी पहाड़ जैसी समस्या को भी दूर कर सकी, वह बताती है:
“मेरी नानी बड़ी प्यारी और रहम-दिल थी। मगर दुःख की बात है, जब मैं १६ साल की थी तब वह चल बसी। उसकी मौत से मुझे बहुत भारी सदमा पहुँचा। इस वज़ह से मैं इतनी ज़्यादा गड़बड़ा गई थी कि कमरे के बाहर आँगन तक भी नहीं जाना चाहती थी। खुद को मैंने एकांतवासी बना लिया था।
“न तो अब मैं स्कूल जाती थी, और न ही मेरे पास कोई नौकरी थी। मैं बस अपने कमरे में अकेली बैठी रहती थी। एकदम अकेली, बगैर किसी सहेली के, मैं गहरी हताशा की शिकार हो गई थी। मैं खुद को बेकार समझने लगी थी इसलिए मर जाना चाहती थी, जिससे सब खत्म हो जाए। मेरे मन में बार-बार यही सवाल आता, ‘मैं क्यों ज़िंदा हूँ?’
“मेरी मम्मी गीसेलॉ नाम की एक जवान साक्षी से प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! नामक पत्रिकाएँ लिया करती थी। एक दिन जब गीसेलॉ हमारे घर के पास से जा रही थी तो मेरी मम्मी ने उसे रोककर पूछा कि क्या वह किसी तरह मेरी मदद कर सकती है। गीसेलॉ मेरी मदद करने के लिए तैयार हो गई, लेकिन मैंने उसकी शक्ल देखने तक से इंकार कर दिया। फिर भी उसने हार नहीं मानी। उसने मुझे एक खत लिखा। उसमें लिखा था कि वह मेरी दोस्त बनना चाहती है, और उसने किसी और के बारे में भी लिखा, जो उससे कहीं ज़्यादा बढ़कर है मगर वह भी मेरा दोस्त बनना चाहता है। और उसने बताया कि वह है यहोवा परमेश्वर।
“इस बात ने मेरे दिल को छू लिया और मैंने उसके खत का जवाब दिया। और तीन महीने तक यह खत लिखने का सिलसिला चलता रहा। गीसेलॉ के बहुत उकसाने और समझाने के बाद ही मैंने उससे मिलने की हिम्मत जुटाई। हमारी पहली मुलाकात में, गीसेलॉ ने मेरे साथ आप पृथ्वी पर परादीस में हमेशा जीवित रह सकते हैं नामक किताब के साथ बाइबल अध्ययन किया। अध्ययन के बाद, उसने मुझे मीटिंग के लिए किंगडम हॉल आने को कहा। यह सुनते ही मैं चौंक गई। पिछले चार साल से मैं अपने घर से बाहर नहीं निकली थी, और गली में कदम रखने का ख्याल ही मेरे लिए भयानक बात थी।
“गीसेलॉ ने मेरे साथ बहुत ही धीरज से काम लिया। पहले उसने मुझे पूरा विश्वास दिलाया कि डरने की कोई बात नहीं है और फिर यह कहा कि मीटिंग वह मुझे अपने साथ ले जाएगी। आखिरकार मैंने उसकी बात मान ली। पर जब हम किंगडम हॉल पहुँचे तो वहाँ मैं कप-कपाने लगी और मेरे पसीने छूटने लगे। मैं किसी को भी नमस्ते नहीं कह पाई। लेकिन इसके बावजूद मैं मीटिंग में जाते रहने के लिए तैयार थी, और गीसेलॉ भी हर हफ्ते मुझे मीटिंग के लिए बुलाना नहीं भूलती थी।
“मेरी झिझक मिटाने के लिए गीसेलॉ मीटिंग में मुझे काफी पहले ले आती थी। हम गेट के पास खड़े हो जाते, और हर एक आनेवाले का अभिवादन करते। इस तरह मैं एक समय पर सिर्फ एक या दो जन को ही देख पाती थी इसके बजाए कि एकदम से एक बड़े समूह को देखूँ। जब कभी मैं यह महसूस करती कि मैं अब और ऐसा नहीं कर सकती, तब गीसेलॉ मुझे मत्ती १९:२६ बताती: ‘मनुष्यों के लिए यह असम्भव है, परन्तु परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।’
“जबकि यह सब करना आसान नहीं था, मगर फिर भी मैं सर्किट सम्मेलन में भी उपस्थित हो सकी, जहाँ बड़ी तादाद में लोग आते हैं। ऐसा करना मेरे लिए कितनी बड़ी बात थी! सितम्बर १९९५, में मैं हिम्मत जुटाकर प्राचीनों के पास गई और मैंने घर-घर प्रचार करने के बारे में बातचीत की। छः महीने बाद अप्रैल १९९६ में, मैंने बपतिस्मा लेकर यह दिखाया की मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया है।
“हाल ही में जब किसी ने मुझसे पूछा कि ऐसा बड़ा कदम उठाने की मुझमें हिम्मत कहाँ से आई, तो मैंने उसे जवाब दिया: ‘यहोवा को खुश करने की मेरी इच्छा, मेरे डर से कहीं बड़ी है।’ अब भी कभी-कभी मुझे हताशा का दौरा पड़ता है, मगर मेरी खुशी भी बड़ी है क्योंकि मैं रेग्यूलर पायनियर के रूप में सेवा कर रही हूँ। जब मैं अपने बीते दिनों पर नज़र डालती हूँ तो गीसेलॉ की बात को सच पाती हूँ। अब मेरा एक ऐसा दोस्त है जो मुझसे प्यार करता है और जो ‘मुझे सामर्थ देता है।’ ”—फिलिप्पियों ४:१३.
[पेज 8 पर तसवीर]
“यहोवा को खुश करने की मेरी इच्छा, मेरे डर से कहीं बड़ी है”