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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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आराम ही नहीं, काम भी

“फुरसत एक खूबसूरत पोशाक की तरह है, लेकिन इसे रोज़-रोज़ नहीं पहना जा सकता।” इन शब्दों के ज़रिए एक अनाम लेखक ने बहुत बढ़िया ढंग से समझाया कि फुरसत की कितनी अहमियत होती है। इसके साथ-साथ उसके कहने का मतलब यह भी था कि हमें अपना समय सिर्फ फुरसत में ही नहीं बिताना चाहिए, बल्कि दूसरे अच्छे कामों में भी हमें अपना समय लगाना चाहिए।

प्रेरणा पाकर बाइबल के एक लेखक सुलैमान ने भी इसी विषय के बारे में लिखा। इस बुद्धिमान राजा ने कहा कि हमें दो हदों को पार करने से बचना चाहिए। पहली हद में, “मूर्ख छाती पर हाथ रखे रहता, और अपना मांस खाता है।” (सभोपदेशक ४:५) जी हाँ, आलस एक व्यक्‍ति को गरीबी के कुए में ढकेल देता है, जिससे न सिर्फ उसका स्वास्थ्य खतरे में पड़ेगा बल्कि वह अपनी जान से भी हाथ धो बैठेगा। दूसरी हद में, कुछ लोग मेहनत करने के चक्कर में अपना सब कुछ त्याग देते हैं। जो व्यक्‍ति हरदम काम में लगे रहते हैं उनके बारे में सुलैमान कहता है: “यह भी व्यर्थ और मन का कुढ़ना है।”—सभोपदेशक ४:४.

सुलैमान ने हमारे फायदे के लिए संतुलन बनाने की सलाह दी: “चैन के साथ एक मुट्ठी उन दो मुट्ठियों से अच्छा है, जिनके साथ परिश्रम और मन का कुढ़ना हो।” (सभोपदेशक ४:६) एक व्यक्‍ति को “परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी” रखना चाहिए, यानी जो उसने कमाया है उससे समय-समय पर आनंद भी लेना चाहिए। (सभोपदेशक २:२४) और नौकरी के अलावा भी ज़िंदगी में दूसरी चीज़ें होनी चाहिए। जैसे कि हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपना कुछ समय अपने परिवार के साथ बिताएँ। नौकरी अपनी जगह है, मगर सुलैमान ने ज़ोर देकर कहा कि हमारा सबसे पहला कर्त्तव्य है परमेश्‍वर की सेवा करना। (सभोपदेशक १२:१३) क्या आप उन लोगों में से एक हैं जो संतुलित रूप से काम करने का आनंद उठाते हैं?

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