वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w02 5/15 पेज 28
  • पाठकों के प्रश्‍न

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • पाठकों के प्रश्‍न
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
  • मिलते-जुलते लेख
  • पाठकों के प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • अपने विवेक के मुताबिक काम कीजिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • अंत्येष्टि रीति-रिवाज़ों पर मसीही दृष्टिकोण
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
  • अपने शादी के दिन की खुशी और गरिमा बढ़ाइए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
w02 5/15 पेज 28

पाठकों के प्रश्‍न

क्या एक सच्चे मसीही का चर्च में आयोजित अंत्येष्टि या शादी में हाज़िर होना ठीक है?

अगर हम झूठे धर्म से ताल्लुक रखनेवाले किसी भी काम में हिस्सा लेते हैं तो यहोवा इससे नाखुश होता है, इसलिए हमें हर हाल में ऐसे कामों से दूर रहना चाहिए। (2 कुरिन्थियों 6:14-17; प्रकाशितवाक्य 18:4) चर्च में आयोजित अंत्येष्टि एक ऐसी धार्मिक रस्म है जिसमें अकसर उपदेश भी दिया जाता है। और इसमें ऐसी बातें बतायी जाती हैं जो बाइबल के मुताबिक नहीं हैं, जैसे आत्मा अमर है और सभी अच्छे लोग स्वर्ग जाएँगे। शायद वहाँ कुछ ऐसी रस्में भी मनायी जाएँ जैसे क्रूस का निशान बनाना और जब पादरी या चर्च का सेवक प्रार्थना करता है तब उसमें शरीक होना। चर्च या दूसरी जगहों पर होनेवाली शादियों में भी ऐसी प्रार्थनाएँ की जाती हैं और ऐसी धार्मिक रस्में निभाई जाती हैं, जो बाइबल की शिक्षा के मुताबिक नहीं हैं। जब एक मसीही ऐसे लोगों के बीच होता है जहाँ सभी झूठे धर्म की रस्में मान रहे हों, तब उस पर भी उन रस्मों को मानने का दबाव आ सकता है और उस दबाव का सामना करना शायद उसके लिए बहुत मुश्‍किल हो जाए। इसलिए मसीहियों के लिए जानबूझकर खुद को ऐसी मुसीबत में डालना कितनी बड़ी मूर्खता होगी!

लेकिन जब एक मसीही से माँग की जाती है कि उसे चर्च में की जानेवाली अंत्येष्टि या शादी में शामिल होना है, तब क्या? उदाहरण के लिए, एक अविश्‍वासी पति, अपनी मसीही पत्नी पर दबाव डाल सकता है कि ऐसे किसी समारोह में उसके साथ चले। ऐसे में, क्या वह अपने पति के साथ नहीं जा सकती, हालाँकि वह किसी रस्म में खुद हिस्सा नहीं लेगी? अपने पति की ख्वाहिश पूरी करने के लिए, पत्नी शायद उसके साथ जाने का फैसला करे और मन में यह ठान ले कि वह किसी भी धार्मिक रस्मों-रिवाज में हिस्सा नहीं लेगी। या फिर, वह यह सोचकर न जाने का फैसला करे कि अगर उस पर दबाव डाला गया, तो वह इसका सामना नहीं कर पाएगी और शायद वह परमेश्‍वर के उसूलों पर चलने में समझौता कर बैठे। वह जो भी फैसला करे यह उस पर है। वह बेशक बहुत सोच-समझकर फैसला करेगी जिससे कि उसका विवेक शुद्ध रहे।—1 तीमुथियुस 1:19.

वह चाहे जो भी फैसला करे, उसके लिए अच्छा होगा कि अपने पति को यह समझाए कि उसका विवेक उसे किसी भी तरह के धार्मिक समारोह में हिस्सा लेने, वहाँ गाए जानेवाले भजनों में सुर मिलाने या प्रार्थना के वक्‍त सिर झुकाने की इजाज़त नहीं देगा। उसके समझाने पर शायद पति को एहसास हो कि अगर वह उसके साथ जाएगी, तो ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं जब शायद पति को शर्मिंदा होना पड़े। इसलिए वह अपनी पत्नी के लिए प्यार की खातिर, उसके विश्‍वास का लिहाज़ करते हुए या खुद शर्मिंदा होने से बचने की खातिर शायद यह फैसला करे कि वह अकेले ही जाएगा। लेकिन अगर वह पत्नी पर साथ चलने के लिए दबाव डालता है तो वह किसी भी रस्म में हिस्सा नहीं लेगी।

इस मामले में कोई भी फैसला करने से पहले, एक और बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है, कि अगर हम चर्च में होनेवाले किसी समारोह में हाज़िर होंगे तो इसका हमारे भाई-बहनों पर कैसा असर पड़ सकता है। क्या इससे किसी के विवेक को चोट पहुँच सकती है? मूर्तिपूजा में हिस्सा न लेने का उनका इरादा क्या कमज़ोर हो सकता है? प्रेरित पौलुस सलाह देता है: “तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।”—फिलिप्पियों 1:10.

अगर समारोह एक मसीही के किसी करीबी रिश्‍तेदार के लिए है, तो शायद उसके बाकी रिश्‍तेदार भी उस पर समारोह में हाज़िर होने का दबाव डालें। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, एक मसीही को हर पहलू के बारे में अच्छी तरह सोचना चाहिए। कुछ हालात में शायद एक भाई या बहन इस नतीजे पर पहुँचे कि अगर वे चर्च में किसी अंत्येष्टि या शादी में हाज़िर हों और किसी रस्म में हिस्सा न लें, तो किसी तरह की परेशानी खड़ी नहीं होगी। दूसरी तरफ, हालात ऐसे भी हो सकते हैं कि वहाँ हाज़िर होने की वजह से अपने या दूसरों के विवेक को ठेस लगेगी, जिसका नतीजा वहाँ मौजूद होने के फायदों से कहीं ज़्यादा बुरा होगा। हालात चाहे कैसे भी हों, एक मसीही को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके फैसले से परमेश्‍वर और इंसानों के सामने अपना विवेक शुद्ध रखने में उसे कोई बाधा न आए।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें